विदेश व्यापार घाटे की चुनौती

- डा. जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गेनाइजेशंस (फियो) के कार्यक्रम में यह बात एक मत रेखांकित हुई है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में तेजी से आने वाला समय देश से निर्यात के लिए काफी चुनौतीपूर्ण व कठिन होने जा रहा है। ऐसे में हमें जहां निर्यात के नए बाजार खोजने होंगे, वहीं कम जरूरी उत्पादों का आयात नियंत्रित करना होगा। तभी देश के विदेश व्यापार के घाटे में कमी लाई जा सकेगी।
गौरतलब है कि हाल ही में जारी आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में भारत से उत्पादों का निर्यात 447 अरब डॉलर और सेवा निर्यात 323 अरब डॉलर यानी कुल 770 अरब डॉलर रहा है। यद्यपि यह देश से निर्यात का सर्वोच्च स्तर है, लेकिन वर्ष 2022-23 में भारत का कुल व्यापार घाटा इससे पिछले वर्ष के 83 अरब डॉलर से बढक़र 122 अरब डॉलर हो गया है। अब इस वर्ष व्यापार घाटे के और बढऩे की आशंका है।
स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि चालू वित्त वर्ष 2023-24 उत्पाद निर्यात के लिहाज से बेहतर नहीं रहने वाला है। भारत अपने कुल उत्पाद निर्यात का सबसे अधिक करीब 17.50 फीसदी निर्यात अमेरिका को करता है, जो मंदी की चपेट में आता दिख रहा है। अमेरिका में महंगाई अपने चरम पर है और इसे रोकने के लिए अमेरिकी फेडरल बैंक लगातार ब्याज दरों में इजाफा कर रहा है। यूरोप की आर्थिक दशा भी ठीक नहीं चल रही है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच यूरोप के अधिकतर देश गैस व खाद्य संकट से जूझ रहे हैं जिससे वहां महंगाई बढऩे के साथ औद्योगिक उत्पादन भी कम हो गया है। संभवतया यही कारण है कि वाणिज्य विभाग की तरफ से चालू वित्त वर्ष 2023-24 के लिए कोई निर्यात लक्ष्य अब तक तय नहीं किया गया है। पिछले वित्त वर्ष में उत्पाद व सेवा निर्यात जिस ऊंचाई पर रहा है, इस बार निर्यात का उस मंजिल तक भी पहुंचना आसान नहीं दिख रहा है।


दूसरी ओर बढ़ते हुए आयात रोकना भी मुश्किल हैं। भारत का कुल आयात पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में 892 अरब डॉलर रहा, जो वित्त वर्ष 2021-22 में 760 अरब डॉलर था। आयात में कमी लाना चुनौती दिखाई दे रही है। यद्यपि चीन और भारत के बीच सीमा पर लगातार तनाव बढ़ा हुआ है, लेकिन फिर भी विदेश व्यापार के क्षेत्र में भारत की चीन पर निर्भरता बनी हुई है। इस समय चीन से लगातार बढ़ता व्यापार असंतुलन पूरे देश की एक बड़ी आर्थिक चिंता का कारण बन गया है। वर्ष 2021-22 में चीन से 54.57 अरब डॉलर मूल्य का आयात किया गया था। किन्तु वर्ष 2022-23 में चीन से कुल आयात बढक़र 98.51 अरब डॉलर हो गया है। जबकि वर्ष 2021-22 में चीन को किया गया निर्यात 21.26 अरब डॉलर था। जोकि वर्ष 2022-23 में घटकर 15.32 अरब डॉलर रह गया।
ऐसे में पिछले वित्त वर्ष में चीन से व्यापार घाटा बढक़र 83.19 अरब डॉलर हो गया है। निश्चित रूप से चालू वित्तीय वर्ष में विदेश व्यापार में घाटे को नियंत्रित करने के लिए आयात में कमी और निर्यात में वृद्धि करने के विभिन्न रणनीतिक कदम उठाने होंगे। हमें चीन सहित विभिन्न देशों से घटिया और कम गुणवत्ता मानक वाले आयात नियंत्रित करने होंगे। यह बात महत्वपूर्ण है कि सरकार ने उपभोक्ता की सुरक्षा व उनकी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े आयातीत हो रहे घटिया व कम गुणवत्ता के 2000 से अधिक उत्पादों को चिन्हित किया है। अब उनके आयात नियंत्रण पर ध्यान देना होगा। ऐसे उत्पादों में से इस वर्ष 643 उत्पादों के लिए गुणवत्ता मानक जारी करने का जो लक्ष्य रखा गया है, उसका परिपालन आवश्यक है।
गौरतलब है कि फुटवियर मेड फ्रॉम लेदर एंड अदर मटेरियल (क्वालिटी कंट्रोल) ऑर्डर 2022 के तहत देश में एक जुलाई से क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर लागू किया जाना तय हुआ है। यह ध्यान रखा जाना होगा कि फुटवियर गुणवत्ता नियंत्रण के ऑर्डर एक जुलाई से अवश्य लागू किए जाएं और उसकी तारीख आगे नहीं बढ़ाई जाए। इससे लाभ यह होगा कि देश में चीन, वियतनाम, इंडोनेशिया और बंगलादेश से होने वाले घटिया जूते-चप्पलों के आयात में बड़ी कमी आएगी। ज्ञातव्य है कि चीन से सबसे अधिक फुटवियर का आयात होता है। पिछले वित्त वर्ष में 2022-23 में चीन से 85.85 करोड़ डॉलर मूल्य के फुटवियर का भारत में आयात किया गया है।
अब निर्यात बढ़ाने के लिए एक अप्रैल 2023 से लागू नई विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) 2023 का कारगर क्रियान्वयन जरूरी है। इसके तहत इन्सेंटिव की जगह टैक्स और विभिन्न शुल्क में राहत देते हुए निर्यात संबंधी काम को आसान बनाने की कई व्यवस्थाएं सुनिश्चित करके वर्ष 2030 तक देश से उत्पाद एवं सेवा निर्यात दो लाख करोड़ (दो ट्रिलियन) डॉलर तक ले जाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है। नई विदेश व्यापार नीति के तहत सरकार ने निर्यात के दायरे को बढ़ाने के लिए जिला स्तर पर एक्सपोर्ट हब की स्थापना करने की घोषणा की है और वित्त वर्ष 2023-24 में 75 जिलों में एक्सपोर्ट हब बनाए जा सकते हैं। इससे निर्यात से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी दूर हो सकेगी। सरकार वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट की पहचान का काम पहले ही पूरा कर चुकी है। जिला स्तर पर निर्यात सुविधा विकसित होने से उस जिले के उत्पाद को आसानी से निर्यात किया जा सकेगा। ई-कॉमर्स के माध्यम से होने वाले निर्यात के प्रोत्साहन के लिए अलग से ई-कॉमर्स जोन की स्थापना का भी ऐलान किया गया है।
यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि नई एफटीपी के तहत आवेदनों का डिजटलीकरण हो तथा आवेदकों को स्वचालन प्रणाली के जरिए मंजूरी मिले। पहले निर्यात संबंधी विभिन्न मंजूरियों से तीन दिन से लेकर एक महीने का समय लगता था, अब यह मंजूरी एक दिन में दिए जाने संबंधी नियम का परिपालन हो।
नि:संदेह इस समय जब वैश्विक आर्थिक एवं व्यापार चुनौतियों के बीच कुल वैश्विक निर्यात में भारत का योगदान करीब 1.8 फीसदी और वैश्विक व्यापार में भारत का हिस्सा दो फीसदी से भी कम है, तब व्यापार घाटा कम करना सचमुच चुनौतीपूर्ण है। देश के विदेश व्यापार के सामने कई चुनौतियां मुंहबाए खड़ी हैं। देश में माल परिवहन की लागत बहुत ऊंची 13.14 फीसदी है। विश्व बैंक के मुताबिक भारत लॉजिस्टिक खर्च के मामले में दुनिया में बहुत पीछे 44वें स्थान पर है। शोध और नवाचार के मामले में भारत दुनिया में 40वें क्रम पर है। देश की श्रमशक्ति नई डिजिटल कौशल योग्यता से बहुत दूर है। प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) के संतोषप्रद परिणाम अभी मिलना शुरू नहीं हुए हैं। चीन से व्यापार असंतुलन कम करने की बड़ी चुनौती भी सामने है।
ऐसे में देश से निर्यात बढ़ाने और आयात घटाने के लिए अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण की रफ्तार तेज करने के साथ-साथ युवा श्रमशक्ति को कौशल योग्यता से सुसज्जित करना होगा। देश की नई लॉजिस्टिक नीति और गति शक्ति योजना की अभूतपूर्व रणनीतियों के कारगर क्रियान्वयन से लॉजिस्टिक लागत घटाना होगी। एक बार फिर से देश के करोड़ों लोगों को चीनी उत्पादों की जगह स्वदेशी उत्पादों के उपयोग के नए संकल्प के साथ आगे बढऩा होगा। साथ ही देश के बाजार में चीन के बढ़े हुए वर्चस्व को तोडऩे के लिए पूरे देश में और अधिक उद्यमियों और कारोबारियों के द्वारा शोध और नवाचार तथा नए आइडिए को अपनाते हुए, प्रतिस्पर्धी बनना होगा। साथ ही देश के उद्योग-कारोबार जगत के द्वारा प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) का अधिकतम लाभ लेते हुए इसके कारगर क्रियान्वयन से चीन से आयातों का प्रभुत्व कम करने के लिए अधिकतम प्रयास किए जाने होंगे।

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