प्रवासी श्रम की सीमा

तमिलनाडु में बिहार के श्रमिकों के साथ किसी भी तरह का कथित अप्रिय घटनाक्रम अस्वीकार्य है, लेकिन इस मुद्दे को लेकर जिस तरह की राजनीति की जा रही है वह दुर्भाग्यपूर्ण है। इस मुद्दे पर ज्वलनशील सोशल मीडिया की भूमिका पर भी सवाल उठे हैं, जिसमें पुराने वीडियो वायरल करके उन्हें ताजा घटनाक्रम से जोड़ा गया। निस्संदेह, यह उत्तर भारतीय राज्यों के सत्ताधीशों की नाकामी है कि उनके राज्यों की श्रम शक्ति विकसित व विकासशील राज्यों में जीवन-यापन के लिये मजबूर हैं। हमारा देश सदैव ही वसुधैव कुटुंबकम‍् की अवधारणा पर विश्वास करता रहा है। वैसे भी राज्यों को लेकर संकीर्ण सोच हमारे संघवादी ढांचे के विरुद्ध ही है। जो राष्ट्रीय एकता की अवधारणा को भी ठेस पहुंचाती है। निस्संदेह, ऐसे मामलों में भावनात्मक मुद्दों को उछालकर दो राज्यों के बीच तनाव पैदा करने का अकसर प्रयास होता है। हाशिये पर गये राजनीतिक दल ही इन मुद्दों को उठाकर भावनात्मक दोहन करते हैं। एक राजनीतिक विचारक की टिप्पणी खासी चर्चित रही है कि ‘एक नेता वह व्यक्ति होता है जो हम से वो करवा देता है, जिसे हम करना नहीं चाहते। लेकिन उसे करने के बाद हम नेता के अहसानमंद हो जाते हैं।’ इस मामले में कुछ ऐसा ही हुआ और एक राजनीतिक दल पर ऐसे आरोप लगे। मामले में एक राजनेता व अन्य लोगों पर अफवाह फैलाने के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की गई। कुछ वर्ष पहले महाराष्ट्र में भी हिंदी भाषी लोगों के खिलाफ मनसे ऐसी मुहिम चलाती रही है। लगातार उत्तर भारतीयों पर हमले भी हुए लेकिन बहुसंख्यक समाज ने इसे सिरे से खारिज किया। निस्संदेह, कुछ सिरफिरे लोगों के द्वारा पैदा किये गये विवाद को राज्यों के सभी लोगों को जिम्मेदार ठहराना कतई तार्किक व न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता। अच्छी बात यह है कि तमिलनाडु प्रकरण में दोनों सरकारों की सजगता व सक्रियता के चलते विवाद का विस्तार नहीं होने पाया है। निस्संदेह, आज सूचना क्रांति के युग में इस तरह की अफवाहों को फैलने से रोकने और समय रहते वास्तविक तथ्य सार्वजनिक करने के प्रयास होने चाहिए। साथ ही हमें सोशल मीडिया के जरिये फैलायी जाने वाली अफवाहों पर रोक के लिये गंभीर प्रयास करने होंगे। हम यह भी ध्यान रखें कि तमिलनाडु के तटीय इलाकों में मछली उद्योग, चेन्नई के कारोबार व कंस्ट्रक्शन उद्योग में बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक काम कर रहे हैं। यहां तक कि तिरपुर के वस्त्र उद्योग में करीब तीन लाख प्रवासी श्रमिक काम कर रहे हैं। ऐसे विवादों से देश की अर्थव्यवस्था को गति देने वाले उद्योगों पर घातक असर पड़ सकता है। अच्छी बात यह है कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन व बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने सीधे संपर्क करके इन आरोपों को खारिज किया। बिहार से भी अधिकारियों का दल मामले की जांच के लिये तमिलनाडु गया। वाकई ऐसे विवादों में राज्य सरकारों व अधिकारियों की भूमिका विवाद के पटाक्षेप में महत्वपूर्ण हो जाती है।

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