दहेज अभिशाप से कम नहीं

हमारे देश भारत में आज के युग में भी दहेज प्रथा बहुत प्रचलित है। दहेज का अर्थ वर पक्ष के द्वारा वधु पक्ष से वस्तुओं के रूप में या नकद राशि के रूप में प्राप्त करना है। हालांकि दहेज निषेध अधिनियम 1961 के अनुसार किसी भी प्रकार का दहेज लेना चाहे वह वस्तुओं के रूप में प्राप्त करना हो या नकद राशि, सभी पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध है और दहेज लेना या इसके लिए प्रोत्साहित करना कानूनी रूप से अपराध है, जिसके लिए 5 वर्ष की कैद और 15000 रुपए जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन फिर भी यह प्रथा रुकने का नाम नहीं ले रही है। सरकार ने तो कानून बना दिया है, लेकिन इसे लागू करने के लिए प्रशासन और लोगों को आगे आना होगा। हमें यह नहीं सोचना होगा कि समाज क्या कहेगा और प्रशासन को भी इसके विरुद्ध सख्त कदम उठाने होंगे। इसी बात को ध्यान में रखकर हमारे देश भारत की सरकार ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान चलाया हुआ है और इसके सार्थक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। यह अभियान तभी तेजी से आगे बढ़ेगा जब हम सब मिलकर इस अभियान को आगे बढ़ाने में मदद करेंगे। इससे लड़कियों के प्रति हमारी नकारात्मक सोच बदलेगी। देश की लगभग आधी आबादी की हम उपेक्षा नहीं कर सकते। जितने भी विकसित राष्ट्र हैं उनके निर्माण में महिलाओं का बहुत अधिक योगदान है तो फिर हम पीछे क्यों रहें। जब तक हम महिलाओं का पूर्ण सम्मान नहीं करेंगे तब तक हमारी पुरुष प्रधान मानसिकता नहीं बदलेगी। हमारे देश में बेटी या महिला को लक्ष्मी का दर्जा दिया गया है तो फिर इस प्रकार का भेदभाव क्यों। कोई समय था जब हमारे देश में सती प्रथा प्रचलित थी, जिसे राजाराम मोहन राय ने अपने अथक प्रयासों से बंद करवाया। यदि इतने वर्षों पहले इस प्रकार की प्रथा को समाप्त किया जा सकता है तो फिर दहेज प्रथा को समाप्त क्यों नहीं किया जा सकता। भले ही कागजों में या फिर कानूनी रूप से इस प्रथा पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध है, लेकिन व्यावहारिक रूप से यह प्रथा आज भी प्रचलित है। आमतौर पर अखबारों, पत्रिकाओं और टेलीविजन पर समय समय पर हम लोग दहेज के लिए महिलाओं को प्रताडि़त या हत्या करने जैसी घटनाओं के बारे पढ़ते हैं या सुनते हैं लेकिन फिर भी यह प्रथा रुकने का नाम नहीं ले रही है।

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