मंथन का वक्त


मौजूदा हालात पर गौर करने से सहज ही अंदाजा लग जाता है कि कई राजनीतिक दलों के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है। यह एक ऐसा प्रासंगिक और गंभीर मुद्दा है जिस पर सभी राजनीतिक दलों को गहराई से मंथन करने की जरूरत है। अगर आज कुछ दलों को अपना अस्तित्व बचाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है तो यह उनके लिए तो चिंता की बात है ही, लोकतांत्रिक राजनीति के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता। इसीलिए हैदराबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी कि राजनीतिक दलों के सामने अपने को बचाने का संकट दूसरों के लिए कोई अच्छी, खुशी की या हंसने की बात नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह दूसरे सभी दलों के लिए भी चिंता और चिंतन का विषय होना चाहिए। अस्तित्व के संकट से जूझ रहे दलों से यह सीख लेने की जरूरत है कि आखिर वे इस हालत में पहुंचे क्यों? राजनीतिक दल चाहे वे राष्ट्रीय स्तर के हों या क्षेत्रीय स्तर के, अगर अपने भीतर की खामियों पर विचार कर उन्हें दूर करने की दिशा में नहीं बढ़ेंगे तो यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए भी शुभ नहीं। देखने में आ रहा है कि पिछले कुछ सालों में तो कई राजनीतिक दल अपना जनाधार बचाने में नाकाम रहे हैं। जाहिर है, इनमें वही दल ज्यादा हैं जो जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। यह कहने की जरूरत नहीं कि पिछले कुछ वर्षों में भाजपा की लोकप्रियता और कामयाबी का ग्राफ जिस तेजी से बढ़ा है, उसके पीछे सत्ता के साथ एक बड़ा कारण पार्टी का संगठन भी है। कोई भी पार्टी संगठन जनता के बीच पैठ तभी बना पाता है, जब उसके कार्यों को लेकर लोगों में भरोसा बनता है। केंद्र में दूसरी बार भी अगर भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को लोगों ने सत्ता सौंपी तो जाहिर है, लोग उसके पिछले कार्यकाल से खुश रहे होंगे! इसलिए अगर कोई राजनीतिक दल बहुमत के साथ पहली, दूसरी या तीसरी बार सत्ता में पहुंचता है, तो यह उसके लिए यही बड़ी उपलब्धि होती है। पर पिछले कुछ सालों पर नजर डाली जाए तो पाएंगे कि जिन दलों ने चुनाव जीत कर पूर्ण बहुमत की सरकारें बनाई और चलाई, वही आज सिमटते दिख रहे हैं।  राजनीति में हार-जीत या सत्ता में आना-जाना चलता रहता है। यह कोई नई बात नहीं है। ऐसा भी नहीं कि अगर कोई पार्टी एक बार सत्ता से बाहर हो गई तो वह दोबारा सत्ता में नहीं पहुंच सकेगी। या जो पार्टी सत्ता में है, वह हमेशा बनी ही रहेगी। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी राजनीतिक दल चाहे वह सत्ता में हो या सत्ता से बाहर, वह ताकतवर कितना है, उसका जनाधार कितना मजबूत है। अगर राजनीतिक दल सशक्त होंगे, तभी एक मजबूत विपक्ष संभव हो सकेगा। 

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