अंतर्राष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट और नरसंहार अपराध : पुराने अनुभव और नई चुनौतियां"  विषय पर वेबीनार

मेरठ/शोभित विश्वविद्यालय मेरठ के स्कूल ऑफ लॉ एंड कांस्टीट्यूशनल स्टडीज (विधि विभाग) मे आज ज्ञानार्जन श्रंखला में "अंतर्राष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट और नरसंहार अपराध : पुराने अनुभव और नई चुनौतियां"  विषय पर वेबीनार का आयोजन किया। 

मुख्य वक्ता कनाडा के लोक अभियोजक विभाग के क्राउन काउंसिल के सैवेस्टिन लैफरेंस तथा कोलंबिया की एडवोकेट कैथरीन पेना लिनेरिस रही। कार्यक्रम की शुरुआत स्कूल ऑफ लॉ एंड कांस्टीट्यूशनल स्टडीज (विधि विभाग) के प्रोफेसर डॉ परनताप कुमार दास द्वारा मुख्य वक्ताओं के बारे में परिचय कराया गया तथा स्वागत भाषण पढ़ा गया।

कार्यक्रम के प्रारंभ में कैथरीन पेना लेनेरिस ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट के बारे में विस्तार से बताया तथा बताया कि किस प्रकार अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट कार्य करती है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल जस्टिस की उत्पत्ति के बारे में बताते हुए कहा कि कि सबसे पहले न्यूमवग, टोक्यो ट्रायल, योकोस्लोवाकिया के लिए अंतर्राष्ट्रीय क्रिमिनल ट्रायल और रवांडा के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल टिवयूनल आदि का गठन हुआ। 

उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट के क्षेत्राधिकार से संबंधित अनुच्छेद 12 के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने सभी वार्ताओं में सबसे कठिन समझौता इसे बताया। उन्होंने कहा कि यह राज्यों के दलों और राज्यों के बीच भेद का मजाक नहीं उड़ाता है, इस प्रकार स्थापित अंतरराष्ट्रीय कानून तेजी से भटक रहा है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ऑफ क्रिमिनल जस्टिस न्यायिक अन्योआश्रिता या राज्य की संप्रभुता में हस्तक्षेप का गठन किया है।

उन्होंने कहा कि क्योंकि इस विशेष लेख को अपनाना रोम कानून के खिलाफ मतदान करने के मुख्य कारणों में से एक था।उन्होंने कहा कि भारत ने ना तो रोमन कानून पर हस्ताक्षर किए और ना ही इसकी पुष्टि की। इसको समझाने के लिए उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय केसों का भी जिक्र किया उन्होंने अपनी बात के समर्थन में सक्रिय व्यक्तित्व के सिद्धांत को भी बताया और समझाया। उन्होंने यह भी बताया कि अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट को किस तरह से कार्य करता है उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट को जो कि संस्थापक संधि रोम संविधी है चार प्रकार के अपराधों पर क्षेत्राधिकार प्रदान करती है। 1-नरसंहार, 2-मानवता के विरुद्ध अपराध,3- युद्ध अपराध और 4- एकत्रीकरण का अपराध।

कार्यक्रम में बोलते हुए दूसरे वक्ता सैवेस्टिन लैफरेंस नरसंहार को विस्तार से बताया विभिन्न विधिशास्त्रीयो ने नरसंहार की क्या-क्या परिभाषा दी वह भी विस्तार से बतायी। उन्होंने कहा कि किसी जाति, नस्ल, स्थान विशेष पर रह रहे लोगों या धर्म विशेष के लोगों की सामूहिक हत्या ही नरसंहार है। उन्होंने यह भी बताया कि किसी स्थान विशेष पर जाति, धर्म, संप्रदाय के आधार पर किसी भी एक समूह की संस्कृति को नष्ट करना भी एक विशेष प्रकार का अपराध है। नरसंहार को विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि किसी समूह की हत्या, किसी समूह को मानसिक एवं गंभीर शारीरिक क्षति पहुंचाना, किसी समूह को क्षति पहुंचाने के लिए जानबूझकर ऐसा कार्य करना, किसी समूह की जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए जानबूझकर ऐसा कोई कार्य करना, बलपूर्वक किसी समूह के बच्चों को दूसरे किसी समूह में ले जाना भी उन्होंने नरसंहार बताया। उन्होंने नरसंहार के मामलों को ऐतिहासिक मामलों के द्वारा समझाया जैसे कि आर्मीनिया नरसंहार,बोस्निया नरसंहार, कंबोडिया नरसंहार, रवांडा नरसंहार, आस्ट्रेलिया एवं चीन का उदाहरण देकर भी समझाया।

उन्होंने कहा कि भारत में सांस्कृतिक विविधता, भाषा की विविधता है यहां पुराने समय से ही अलग-अलग नस्ल जाति के लोग रहते हैं। उन्होंने नरसंहार के अलग-अलग 10 सोपान बताएं।

कार्यक्रम के अंत में स्कूल ऑफ लॉ एंड कांस्टीट्यूशनल स्टडीज (विधि विभाग) के डायरेक्टर डॉ मोहम्मद इमरान ने सभी वक्ताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया अध्यापकों एवं छात्रों को धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर परनताप कुमार दास द्वारा किया गया। कार्यक्रम में डॉ कुलदीप कुमार, पवन कुमार, शुभम शर्मा, नेहा भारती, पल्लवी जैन, जतिका, महक बत्रा आदि का विशेष योगदान रहा।

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