खाद्य सुरक्षाः जटिल होते सवाल
पूरी दुनिया का ध्यान इस समय रूस-यूक्रेन युद्ध पर लगा है। इससे पहले दुनिया कोरोना संकट से जूझ रही थी। रूस का हमला और कोरोना महामारी दोनों मौजूदा विश्व व्यवस्था को प्रभावित करने वाली घटनाएं हैं। लेकिन दुनिया के सामने एक और बड़ी समस्या खड़ी है और वह जलवायु परिवर्तन की है। हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (आइपीसीसी) की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन से दुनिया के कितने लोग असुरक्षित हैं। रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन कई देशों की खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन चुका है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इस सदी के अंत तक धरती का तापमान एक से चार डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो भारत में चावल की पैदावार तीस फीसद तक कम हो जाएगी। मक्का जैसे दूसरे मोटे अनाजों की पैदावार पर भारी असर पड़ेगा और इसमें सत्तर फीसद तक की कमी देखने को मिल सकती है। अगर ऐसा हुआ तो भारत के लिए गंभीर संकट होगा। ऐसे में करोड़ों लोगों के लिए अनाज का बंदोबस्त करना मुश्किल हो जाएगा। बहरहाल, विभिन्न रिपोर्टों और आंकड़ों के विश्लेषण से यह तथ्य उभर कर आया है कि विश्व में बढ़ते तापमान व जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पादन में कमी दर्ज की जा रही है। फसल चक्र अनियमित और असंतुलित होता जा रहा है। इससे संपूर्ण विश्व के लिए खाद्य सुरक्षा एक अहम चुनौती बनती जा रही है। इसलिए भविष्य में दुनिया के सभी देशों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने के लिए सभी विकल्पों पर विचार करना होगा। गौर करने वाली बात यह है कि विश्व के नेता रियो में, पेरिस में या ग्लासगो में मिलते हैं तो जलवायु परिवर्तन की चिंता करते हैं और उसके बाद सब उसे भुला देते हैं। जो इसे समस्या मानते हैं वे भी सिर्फ मानने के लिए मान रहे हैं और इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। मालूम हो कि कृषि पद्धतियां पूरी तरह मौसम की परिस्थितियों पर आधारित हैं। भारत में पिछले चार दशकों में वर्षा की मात्रा में निरंतर गिरावट आ आई है। बीसवीं सदी के प्रारंभ में औसत वर्षा एक सौ इकतालीस सेंटीमीटर थी, जो नब्बे के दशक में कम होकर एक सौ उन्नीस सेंटीमीटर रह गई है। उत्तरी भारत में पेयजल का संकट तीव्रतर होता जा रहा है। अगर ऐसा होना जारी रहा तो आगामी कुछ दशकों में गंगा को भी सूखने से रोका नहीं जा सकेगा। ऐसे में खेती को लेकर किसानों का रुझान कम होते जाना स्वाभाविक है, जो कि चिंता का विषय है। जलवायु परिवर्तन के भयावह खतरों से निपटने के लिए प्रभावी रणनीति का क्रियान्वयन अतिशीघ्र किया जाना आवश्यक है।
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