कांग्रेस करे आत्ममंथन
कांग्रेस की कार्यसमिति में भले ही सोनिया गांधी के नेतृत्व पर विश्वास जताया गया है, लेकिन हाल के पांच राज्यों के चुनाव में देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की जो स्थिति बनी उसको लेकर कांग्रेस को आत्ममंथन करने की जरूरत है। हालांकि फिलहाल वरिष्ठ कांग्रेसियों के जो बयान सामने आये, उनसे लगता है वे राहुल गांधी को पूर्णकालिक अध्यक्ष के रूप में देखना चाहते हैं। लेकिन पार्टी में सुधार व बदलाव की जरूरत को स्वीकार किया गया। होना भी चाहिए क्योंकि विधानसभा चुनावों में देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी पराभव के सबसे बुरे दौर में है, जो बताता है कि वर्ष 2024 के आम चुनाव में बिना बदलाव व विपक्षी एकजुटता के उसका भाजपा का विकल्प बनना संभव नहीं है। कांग्रेस के पराभव की बानगी देखिये कि वर्ष 2014 में भाजपा के केंद्रीय सत्ता में आते वक्त नौ राज्यों में शासन कर रही थी, अब पंजाब में पराजय के बाद यह संख्या दो रह गयी है। इस साल के अंत में वह हिमाचल में वापसी की कोशिश कर रही है लेकिन राज्य के कर्णधार वीरभद्र की अनुपस्थिति में यह चुनौती कठिन है। वहीं कांग्रेस शासित बचे दो राज्यों राजस्थान व छत्तीसगढ़ में 2023 में चुनाव होंगे। ऐसे में आम चुनाव से पहले वर्ष में भाजपा से पार्टी को बड़ी चुनौती मिलेगी। एक सत्य यह भी है कि बहुमत वाली सरकार को जवाबदेह बनाने के लिये देश में मजबूत विपक्ष की जरूरत होती है। तभी तीन दशक में पराभव के बावजूद कांग्रेस भाजपा का व्यावहारिक विकल्प नजर आती है। लेकिन मौजूदा हालात देखकर दिग्गज कांग्रेसियों का भी धैर्य जवाब दे रहा है। भले ही पिछले दो आम चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 19 फीसदी यानी भाजपा के बाद दूसरे नंबर पर रहा हो, लेकिन उसमें अभी भी भारतीय नागरिकों के नेतृत्व की क्षमता है। संगठनात्मक सुधारों व रीति-नीतियों में बदलाव लाकर वह भाजपा के लिये एकल चुनौती बन सकती है। कुछ लोग पार्टी का गांधी परिवार की आभा से मुक्त न हो पाना भी इसकी वजह बताते हैं। वर्ष 2019 में अध्यक्ष के रूप में राहुल के इस्तीफे के बाद सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष के रूप में पार्टी का नेतृत्व कर रही हैं। अब पार्टी नेता राहुल गांधी को पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे हैं। तो क्या संगठनात्मक सुधार के बिना इस बदलाव से कांग्रेस का पराभव रुक पायेगा? पार्टी को विचार करना होगा कि कभी कांग्रेस की सत्ता की राह रहे उ.प्र. में प्रियंका गांधी की पूरी ताकत झोंकने व महिलाओं, किसानों व बेरोजगारों के मुद्दे को लेकर मुहिम चलाने के बाद पार्टी की ये स्थिति क्यों हुई? इसको लेकर कांग्रेस को कड़े आत्म मंथन की जरूरत है। जरूरत इस बात की है कि वह जमीनी स्तर पर चिंतन करे और फिर अपेक्षित सुधार को अमल में लाए। लोकतंत्र का तकाजा भी यही है। 

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