सोचने को बाध्य करती है कश्मीर फाइल्स
- जगतपाल सिंहद कश्मीर फाइल्स फिल्म आज देश में चर्चा का विषय बन रही है। फिल्म निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने कश्मीर पंडितों की उस दास्तान को दिखाने का प्रयास किया है, जिसे देखकर संवेदनशील व्यक्ति दुखी परेशान होकर सोचने को बाध्य हो जाता है कि अपने ही देश में असहनीय पीड़ा सहकर कश्मीर से अपने घर बार छोड़कर पंडितों को पलायन करना पड़ा।
फिल्म के किरदारों ने अपनी-अपनी भूमिका से दर्शकों को बांधे रखा है। निसंकोच कहा जा सकता है फिल्म के पात्रों ने अपनी कला का अच्छा प्रदर्शन किया है जिस प्रकार की स्क्रिप्ट है वह आज के सभ्य समाज को यह सोचने को बाध्य कर रही है कि देश के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का विभाजन रक्तपात पर हुआ कश्मीर पंडितों की दुखद दास्तान पर सरकारों की निगाह क्यों नहीं गई।
19 जनवरी 1990 को पंडितों के साथ जो मारकाट हुई और वहां से पलायन किया गया देश के इतिहास में दुखद और शर्मनाक घटना थी। भारत का जन्नत कहा जाने वाला कश्मीर आतंकवादियों की शरण स्थली बन गया। पाकिस्तान की शह पर कश्मीर में हिंदुओं पर जुल्म ढाए गए तीनदर्शक से भी ज्यादा समय बीतने के बाद सरकारों ने उस ओर ध्यान नहीं दिया देश में 10 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हो गए जहां तक सांप्रदायिक दंगों की बात की जाए, 1949 में जबलपुर में 1961 में राउरकेला में 1964 में जमशेदपुर में 1965 में रांची में 1974 में मुंबई में 1980 में मेरठ मुरादाबाद अलीगढ़ खुर्जा दंगे हुए इन सांप्रदायिक दंगों में बहुत परिवार उजड़े और उन्होंने अपनों को खो दिया जिन्हें वो आज तक भी भुला नहीं पाए हैं।
यह मत देखो कि मरने वाले हिंदू या मुसलमान थे, केवल यह देखो कि मरने वाले इंसान थे। देश की फाइल खोल कर देखा जाए तो अनेक ऐसी घटनाएं हैं जिन्हें सुनकर देख कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं, रूहें कांपने लगती हैं, लेकिन यथार्थ यह कहता है कि प्रतिशोध को भुलाना होगा। जरूरत एक ऐसे भारत की है जहां इंसानियत के लिए जियो और जीने दो कि नीति के तहत राष्ट्र को बढ़ाना है और इसी के तहत देश के संविधान को सर्वोपरि मानते हुए और संसदीय भाषा और शैली को अपनाते हुए हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई-भाई का पाठ राजनीतिज्ञों को बताना होगा पढ़ाना होगा और दुखद घटनाओं को जिसमें नफरत गुस्सा प्रतिशोध हो को भूलना होगा।
देश की संस्कृति और अध्यात्म हमें अहिंसा परमो धर्म है पर चलने का संदेश देता है जिन पंडितों के साथ कश्मीर में दुखद घटनाएं हुई है उनको स्थापित करने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाने चाहिए।सरकार ने 370 खत्म करके सराहनीय निर्णय लिया और अब कश्मीर घाटी को उसका खोया हुआ सौंदर्य लाने के लिए प्रयास करना चाहिए। जाति धर्म से ऊपर उठकर समाज के अंतिम पायदान के व्यक्ति को भी शासन प्रशासन में उसकी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए।
समाज का प्रबुद्ध वर्ग फिल्मकार कहानीकार साहित्यकारों लेखकों पत्रकार और समाज के प्रबुद्ध वर्ग को समाज की पीड़ा को सामने लाना चाहिए लेकिन सकारात्मक रूप के साथ जिससे समाज में उनका संदेश प्रतिशोध में नहीं जाना चाहिए। पीड़ितों को न्याय दिलाने का काम सरकार का ही नहीं होता बल्कि सभ्य समाज में प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का होता है कि वह दुखी पीड़ित परेशान की मदद करें और करनी भी चाहिए सरकार आती और जाती है।
इतिहास साक्षी है कि घटनाएं भी घटती है लेकिन सत्ता प्राप्ति के लिए जब राजनीतिक लोग वह सब हथकंडे अपनाते हैं जो भविष्य की पीढ़ी को उनका दंश झेलना और भोगना पड़ता है। इसीलिए लोकतंत्र की लोकतांत्रिक परिभाषाएं दिन पे दिन बदल रही है जो सभ्य समाज को कलंकित करती है समय रहते हुए इस ओर ध्यान देने की नितांत आवश्यकता है। आजादी के बाद सरकारों द्वारा जो निर्णय लिए गए आज उनके कुछ दुखद परिणाम देखने को मिल रहे हैं, इसलिए जागरूक समाज को गहराई से चिंतन और मनन करना होगा की देश की संस्कृति और अध्यात्म हमें इंसानियत का धर्म सिखाता है जो सभी धर्मों से सबसे बड़ा धर्म है और अच्छे इंसान हुए बिना कोई भी धार्मिक नहीं हो सकता।
हमारे मन में कट्टरवाद के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए क्योंकि इतिहास साक्षी है कि जिन देशों में धार्मिक कट्टरवाद की जड़े मजबूत हैं वहां के लोग सुरक्षित और महफूज नहीं है हमारा देश विश्व महाशक्ति की ओर बढ़ रहा है जहां अहिंसा परमो धर्म और वसुदेव कुटुंबकम को मानते हैं और उस पर चलकर विश्व को शांति के मार्ग पर चलने का संदेश देते हैं।
(वरिष्ठ अधिवक्ता, बुलंदशहर)
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