स्वर की देवी का यूँ जाना


आह! सुना कानों ने यह क्या,
नैनों से क्यों बहता पानी ।
शांत हुई क्यों सरस कोकिला,
की अमृतमय मधुरिम वानी ।।

स्वर की देवी का यूँ जाना,
जैसे युग का अंत हुआ है ।
मुरझाया भारत का उपवन,
कैसा व्यथित वसंत हुआ है ।
फूल लताएं कहें सहम कर,
नहीं लता का कोई सानी ।



ऐ! भारत की सरस कोकिला,
तूने रस की धार बहाई ।
जिसमें डूबी यह नव पीढ़ी,
भीग-भीग कर खूब नहाई ।
गूँजीं स्वर की मधुर लहरियाँ,
लहर-लहर कर हैं लहरानी ।

स्वर साम्राज्ञी स्वर की देवी,
स्वर सरिता सी है कल्याणी ।
गूँज रही है कण-कण में शुभ,
मधुर रागिनी अमृत वाणी ।
युगों-युगों गाई जाएगी,
तेरी मधुमय अमर कहानी ।

नए पुराने का शुभ संगम,
तुमने करके दिखलाया है ।
नीरस से शास्त्रीय संगीत को,
सुगम बनाया गाया है ।
सुख वैभव का त्याग किया औ'
कहलाई तुम स्वर की रानी ।
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श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
 लहार, भिण्ड ( म.प्र.)।

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