यूक्रेन का वैश्विक संकट

यूक्रेन का संकट बढ़ता जा रहा है। भारत सरकार ने सभी भारतीयों को यूक्रेन छोड़ने का निर्देश दे रखा है। दरअसल इस पूरे मामले में अमेरिका की नींद उड़ी हुई है। चीन और रूस की बढ़ती नजदीकियों से अमेरिका और नाटो की नींद उड़ी हुई है। रूस के मुकाबले चीन कहीं बड़ा प्रतिद्वंद्वी बन कर अमेरिका के सामने आ गया है। इससे निपटने के लिए बाइडेन यूरोप की ओर देख रहे हैं। नाटो यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देशों के मध्य एक सैन्य गठबंधन है, जिसका उद्देश्य साम्यवाद और रूस का प्रभाव कम करना रहा है। अब चीन की बढ़ती ताकत से साम्यवाद के मजबूत होने की आशंका नाटो को परेशान कर रही है।
इतिहास को फिर से गढ़ने की महत्त्वाकांक्षाएं अक्सर विध्वंसक परिणामों से आशंकित रहती हैं। चीन और रूस जैसे देश अपने स्वर्णिम इतिहास को दोहराने की कोशिशों में भौगोलिक और सांस्कृतिक विखंडन को दरकिनार करना चाहते हैं, जो असंभव होकर अस्थिरता को बढ़ाते हैं। इसके बाद भी इन राष्ट्रों की शक्तिकी अतिप्रबलता से सब कुछ हासिल करने की कोशिशें बदस्तूर जारी हैं। इससे विश्व शांति के लिए बड़ा खतरा खड़ा हो गया है।
दरअसल पूर्वी यूरोप का यूक्रेन संकट करीब एक हजार साल पहले कीवियाई रूस की उस ऐतिहासिक पहचान से प्रभावित है, जिसे रूसी राष्ट्रपति पुतिन किसी भी स्थिति में बनाए और बचाए रखने के लिए दृढ़ संकल्पित नजर आ रहे हैं। कीवियाई रूस मध्यकालीन यूरोप का एक राज्य था। आधुनिक रूस, बेलारूस और यूक्रेन तीनों अपनी पहचान कीवियाई रूस राज्य से लेते हैं। अब ये राज्य अलग-अलग हैं। यूक्रेन रूसी पहचान से अलग होने को बेताब है, वहीं रूस और बेलारूस साथ-साथ खड़े नजर आते हैं। यूक्रेन पर दबाव बनाने के लिए रूस ने बेलारूस में अपने सैनिकों के साथ अत्याधुनिक और विध्वंसक हथियार जमा कर लिए हैं। रूस यूक्रेन को केवल एक अन्य देश के रूप में नहीं देखता है, वह उसे बहुस्लाविक राष्ट्र मानता है। सामरिक सुरक्षा के लिए भी रूस के लिए यूक्रेन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इसलिए वह उसे कूटनीतिक और सैन्य रणनीति की धुरी के तौर पर ज्यादा देखता है। यूक्रेन रूस की पश्चिमी सीमा पर है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब पश्चिमी देशों ने तत्कालीन सोवियत संघ पर हमला किया था, तब यूक्रेन के इलाके से ही उसने अपनी रक्षा की थी। यूक्रेन की सीमा पश्चिम में यूरोपीय देशों और पूर्व में रूस के साथ लगती है।
पिछले तीन दशकों में मध्य और पूर्वी यूरोप की राजनीतिक स्थिति में बड़े बदलाव हुए हैं। इससे सामरिक प्रतिद्वंद्विता भी तेजी से बढ़ी है। इस क्षेत्र में दुनिया की बड़ी शक्तियों के बीच भू-राजनीतिक मुकाबला चरम पर है।  पुतिन के इस कदम की वैश्विक स्तर पर कड़ी आलोचना हुई थी। इसके बाद रूस के पर प्रतिबंध लगाए गए थे और पश्चिम के साथ इसके अलगाव को और बल मिला था। क्रीमियाई शहर सेवास्तोपोल का बंदरगाह प्रमुख नौसैनिक अड्डा है और यहां रूसी पोतों की मौजूदगी तनाव का कारण बन गई है। इस समय यूक्रेन की सीमा पर रूस का पूरा दबाव है। वहां युद्ध पूर्व के हालात साफ दिख रहे हैं।
रूस पर सामरिक दबाव बनाने के लिए नाटो और अमेरिका के लिए यूक्रेन निर्णायक भूमिका में नजर आता है। नाटो की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक समुद्री सुरक्षा है, जिसके लिए उसने अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर को केंद्र में रखा है। उसके लिए काला सागर भी सामरिक रूप से अहम है जो रूस और यूक्रेन से जुड़ा है। नाटो जमीन, आसमान, अंतरिक्ष और साइबर चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी सेना को अत्याधुनिक बनाने की ओर अग्रसर है। इसमें उसकी सीधी प्रतिद्वंदिता रूस और चीन से है।
यूक्रेन संकट में रूस के साथ चीन का आना नई आर्थिक और सामरिक व्यवस्था की संभावनाओं को बढ़ा सकता है। यूक्रेन में संकट बढ़ने पर चीन अगर रूस का खुले रूप से समर्थन करता है तो यूरोपीय संघ इसका विरोध कर सकता है। यूरोपीय संघ चीन का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। यूक्रेन संकट के बढ़ने पर पश्चिम के देश भी रूस पर प्रतिबंध लगा सकते हैं।

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