हल्की धूप दे मजा, भाये गुनगुना पानी
सर्द हवाओं में घुली है, ठंड की कहानी।
पवन शीत से नहाये, झटके अपने बाल
ठंड से ठंडा हो जाये, सुर्ख ग़ुलाबी गाल।
अलाव आगे सब बैठे, लगे अच्छी आंच
ठंड सजी है युवा बाला, दिखा रही नाच।
शीत श्रृंगार सुशोभित, मन्द पवन के झौके
हाड़ कपायें ठंड ऐसे, ज्यों मिले इसे मौके।
पूस रात घूंस बनाये, आड़ लगे बड़ा प्यारा
दिन में धूप की गर्मी, शाम ठंड का फवारा।
सब पहनें गर्म दुशाला, जिगर कपकपा जाये
सर्द हवा सुई सी चुभती, पूस माघ जब आये।
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श्याम कुमार कोलारे
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)।
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