- शिवचरण चौहान

आज भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र की जयंती है। भारतेंदु हरिश्चंद्र जो अपने समय के बेमिसाल साहित्यकार थे। जब भारत के अधिकांश साहित्यकार छायावादी रचनाएं लिख रहे थे तब बाबू हरिश्चंद्र अंग्रेजो के खिलाफ तन मन धन और लेखनी से संघर्ष कर रहे थे। हा हा भारत दुर्दशा न देखी जाए नाटक से लोगों को अंग्रेजो के खिलाफ जागरूक कर रहे थे।



भारतेंदु ने अपनी  सात 7 वर्ष की उम्र में भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम देखा था और उसका कातिलाना अंत भी देखा था। उन्होंने महारानी विक्टोरिया के लुभावने वादों सपनों और लुभावने घोषणाओं को सुना था। अपनी आंखों से उन्होंने अंग्रेजों का जुल्म देखा था। जब अंग्रेजों ने भारत में रेल चलाई तो भारतीय बहुत खुश हुए की यह रेल अकाल पीड़ितों को अन्न पहुंचा एगी पर वही रेल भारत का कच्चा माल भर भर कर बंदरगाहों  की तरफ जाने लगी। जिस समय भारत दुर्भिक्ष और अकाल से जूझ रहा था। अंग्रेजों के जोरों सितम और जुल्म सहन कर रहा था। भारतेंदु बाबू से भारत की यह दुर्दशा नहीं देखी गई। अपने छोटे से जीवन काल में भारतेंदु ने वह कर दिखाया जो बड़े-बड़े साहित्यकार लेखक क्रांतिकारी नेता नहीं कर सके।
भारतेंदु ने हिंदी के विकास के लिए अपना सब कुछ लुटा दिया। रीतिबद्ध काव्य लिखा और देश प्रेम की प्रचुर रचनाएं कीं। कई प्रकाशकों ने भारतेंदु समग्र नाम से उनकी सारी रचनाएं एकत्र की है। यहां उसी ग्रंथावली से भारतेंदु जी के दुर्लभ चित्र दिए जा गए हैं।
 यह बहुत अच्छी बात है कि आज उत्तर प्रदेश सरकार का संस्कृति मंत्रालय  भारतेंदु हरिश्चंद्र पर एक कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भारतेंदु हरिश्चंद्र की मूर्ति का अनावरण कर रहे हैं । आज की नई फिल्म भारतेंदु हरिश्चंद्र को भूलती जा रही है। नई पीढ़ी को नहीं पता कि भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र ने भारत में क्रांति की अलख जगाई थी और हिंदी के विकास के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था।
 भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म बनारस में 9 सितंबर 1850 को हुआ था। करीब 35 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया, लेकिन इतनी छोटी उम्र में उन्होंने जो काम किया वह बहुत बड़े-बड़े लोग नहीं कर पाए। भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता गोपालचंद स्वयं एक कवि थे और गिरिधर उपनाम से कविता लिखते थे। उनके परिवार में बहुत दौलत थी किंतु भारतेंदु  हरिश्चंद्र ने हिंदी के उन्नयन के लिए हिंदी साहित्यकारों के लिए अपनी लाखों करोड़ों की दौलत लुटा दी। कवि वचन सुधा और हरिश्चंद्र मैगजीन भी निकाली। खुले दिल से कवियों साहित्यकारों को मदद करते थे और जब कोई उनसे कहता था कि इतना धन उठाना ठीक नहीं तो भारतेंदु बाबू कहते थे कि जिस दौलत में मेरे पुरखों को खा लिया है उस दौलत को अब मैं खा जाऊंगा और हुआ भी ऐसा उन्होंने अपनी सारी दौलत गरीबों में हिंदी के उन्नयन में और साहित्यकारों की मदद में खर्च कर दी आखरी समय उनके पास धन की कमी हो गई थी और उन्हें उधार मांग कर काम चलाना पड़ा। पर अपने व्रत के धनी हरिश्चंद्र पीछे नहीं हटे।
उस समय ब्रजभाषा का युग था। भारतेंदु हरिश्चंद्र ब्रजभाषा की अनेक रचनाएं लिखीं और खड़ी बोली के उन्नयन के लिए उनका योगदान अप्रतिम है।
निज भाषा उन्नति अहे सब उन्नति को मूल।
निज भाषा उन्नति बिना मिटे न हिय का शूल।।
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने  तन मन धन और अपनी लेखनी से अंग्रेज और अंग्रेज सरकार का जमकर विरोध किया। उन पर अंग्रेजों ने बहुत दबाव डाला तमाम आरोप लगाए किंतु भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र झुके नहीं रुके नहीं। भारतेंदु बाबू का जब देहांत हुआ तो उनकी उम्र महज 35 साल की थी । भारतेंदु बाबू ने 16 नाटक लिखे हैं। कवि वचन सुधा, हरिश्चंद्र चंद्रिका और महिलाओं के लिए बाला बोधिनी पत्रिका निकाली थी । वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, अंधेर नगरी चौपट राजा उनके द्वारा लिखे ऐसे नाटक हैं जिनके द्वारा समाज की बुराइयों पर गंभीर चोट की गई है। नील देवी उनका ऐतिहासिक नाटक है। जब तक खड़ी बोली है तब तक भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र का नाम अमर रहेगा। 19वीं शताब्दी में भारतेंदु हरिश्चंद्र जैसा समर्थ उच्च विचारों वाला और हिंदी का समर्थक नहीं पैदा हुआ है। भारतेंदु हरिश्चंद्र जी जैसा सर्वतोमुखी प्रतिभा का कवि साहित्य कार शायद हिंदी में कोई दूसरा पैदा नहीं हुआ।
देखी तुमरी काशी यारो
देखी तुमरी काशी।
आधी काशी भाड़ भंडारी मुड़िया औ सन्यासी।
जैसी रचनाएं लिख कर उन्होंने काशी की विद्रूपता का मजाक उड़ाया है। साहित्य संस्कृति इतिहास वेद पुराण उपनिषद मेला देश प्रेम स्वाधीनता संग्राम आज कोई ऐसा विषय नहीं बचा जिस पर बाबू हरिश्चंद्र ने कलम ना चलाई हो। काशी अगर भगवान शंकर की नगरी है तो साहित्यकारों की भी नगरी है। आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काशी से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचते हैं। काशी के विकास के लिए बहुत कुछ काम मोदी सरकार ने किया है। काशी के घाट और बाबा विश्वनाथ के मंदिरों के लिए जो काम मोदी सरकार ने किया है आज तक कोई नहीं कर पाया। काशी का सबसे बड़ा काम गंगा की स्वच्छता है जो आज तक पूरा नहीं हो पाया।   बहुत छोटी उम्र में भारतेंदु हरिश्चंद्र की मां मर गई थी और उन्हें सौतेली मां ने बहुत दुख दिए थे फिर भी भारतेंदु हरिश्चंद्र ने विचलित हुए बगैर बहुत श्रेष्ठ रचनाएं अपने छोटे से जीवन काल में की हैं। भारतेंदु जयंती पर उन्हें शत-शत नमन। भारतेंदु हरिश्चंद्र जैसे साहित्यकार सदियों में कभी एक बार पैदा होते हैं।
(स्वतंत्र विचारक, वरिष्ठ पत्रकार, कानपुर।)
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