हिंदी के अप्रतिम साधक भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र
By News Prahari -
- शिवचरण चौहान
भारतेंदु ने अपनी सात 7 वर्ष की उम्र में भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम देखा था और उसका कातिलाना अंत भी देखा था। उन्होंने महारानी विक्टोरिया के लुभावने वादों सपनों और लुभावने घोषणाओं को सुना था। अपनी आंखों से उन्होंने अंग्रेजों का जुल्म देखा था। जब अंग्रेजों ने भारत में रेल चलाई तो भारतीय बहुत खुश हुए की यह रेल अकाल पीड़ितों को अन्न पहुंचा एगी पर वही रेल भारत का कच्चा माल भर भर कर बंदरगाहों की तरफ जाने लगी। जिस समय भारत दुर्भिक्ष और अकाल से जूझ रहा था। अंग्रेजों के जोरों सितम और जुल्म सहन कर रहा था। भारतेंदु बाबू से भारत की यह दुर्दशा नहीं देखी गई। अपने छोटे से जीवन काल में भारतेंदु ने वह कर दिखाया जो बड़े-बड़े साहित्यकार लेखक क्रांतिकारी नेता नहीं कर सके।
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