नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को मौजूदा और पूर्व सांसदों/विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों में तेजी लाने के मकसद से अतिरिक्त सीबीआई/विशेष अदालतें स्थापित करने के लिए विभिन्न उच्च न्यायालयों को ढांचागत सुविधाएं मुहैया कराने का निर्देश दिया है।


प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, "हम केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों को अतिरिक्त सीबीआई/विशेष न्यायालयों की स्थापना के प्रयोजनों के लिए उच्च न्यायालयों को आवश्यक ढांचागत सुविधाएं देने का निर्देश देते हैं, मामला जैसा भी हो।" पीठ में शामिल जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और सूर्यकांत ने कहा कि राज्य के विभिन्न हिस्सों में विशेष/सीबीआई अदालतें स्थापित करने की जरूरत है, जहां गवाहों की आसान पहुंच सुनिश्चित करने और मौजूदा विशेष/सीबीआई अदालतों की भीड़भाड़ कम करने के लिए 100 से अधिक मामले लंबित हैं।शीर्ष अदालत ने 2016 में अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका में आदेश पारित किया, जिसमें मौजूदा और पूर्व सांसदों/विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे में तेजी लाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। बुधवार को मामले को उठाया, लेकिन गुरुवार को आदेश अपलोड कर दिया गया। शीर्ष अदालत ने मामले को तीन सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट किया है।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और सूर्य कांत की पीठ ने अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर इस मामले पर बुधवार को सुनवाई की थी। इस मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट के सलाहकार ने एक रिपोर्ट जमा की थी, जिसमें बताया गया था कि कई राज्यों ने सांसद और विधायकों के खिलाफ दर्ज अपराधिक मुकदमा वापस ले लिया है , मामला उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में 2013 में हुए दंगों से संबंधित मामले वापस लेने से जुड़ा है।  मुज़फ्फरनगर दंगो में यूपी सरकार के दो मंत्रियों सुरेश राणा और कपिल देव अग्रवाल समेत विधायक संगीत सोम और पूर्व सांसद भारतेन्दु सिंह के मुकदमे वापसी ले लिए जाने पर  सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की थी और रिपोर्ट तलब की थी, आज अदालत ने विस्तृत  आदेश जारी किये। कल सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नेताओं  के खिलाफ दायर किया गया मुकदमा राज्य सरकार वापस ले सकती है,लेकिन जरूरी है कि हाईकोर्ट इस बात की समीक्षा करे कि मुकदमा वापस लेना सही है या नहीं ,मुकदमा वापसी हाईकोर्ट की मंजूरी के बाद ही हो सकती है। 
पीठ ने उच्च न्यायालयों को लंबित मुकदमों में तेजी लाने के लिए आवश्यक कदम उठाने और पिछले आदेशों द्वारा पहले से निर्धारित समय सीमा के भीतर इसे समाप्त करने का भी निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि सीबीआई की स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, विभिन्न सीबीआई अदालतों में मौजूदा और पूर्व सांसदों से जुड़े 121 मामले और मौजूदा और पूर्व विधायकों से जुड़े 112 मामले लंबित हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, 37 मामले अभी भी जांच के चरण में हैं, जिनमें से सबसे पुराने 24 अक्टूबर 2013 को दर्ज किए गए हैं।
पीठ ने कहा, "मुकदमों के लंबित मामलों के विवरण से पता चलता है कि ऐसे कई मामले हैं जिनमें आरोपपत्र वर्ष 2000 तक दायर किया गया था, लेकिन अभी भी या तो आरोपी की पेशी, आरोप तय करने या अभियोजन साक्ष्य के लिए लंबित हैं।" पीठ ने कहा कि आवश्यक जनशक्ति और बुनियादी ढांचे के अभाव में मामलों को दिन-प्रतिदिन के आधार पर लेने का निर्देश देना संभव नहीं है। पीठ ने कहा, "एनआईए के पास सांसदों/विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों के विवरण से ऐसा प्रतीत होता है कि उन मामलों में भी कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है, जहां वर्ष 2018 में आरोप तय किए गए थे।"  सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को आश्वासन दिया कि वह इस मामले को एजेंसी के साथ उठाएंगे।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने दलील दी कि यदि किसी सांसद/पूर्व सांसद या विधायक/पूर्व विधायक को आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया है, तो ऐसे व्यक्ति को अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए और जीवनभर के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत मामले की अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद करेगी।

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