संजीव शर्मा, कसेरूबक्सर।


आखिर 02 सप्ताह के विलंब के बाद दक्षिण-पश्चिम मानसून पूरे देश में पहुंच गया। भारत में मानसून यात्रा 01 जून को केरल से प्रारंभ होकर, जुलाई के प्रथम सप्ताह को राजस्थान के जैसलमेर और गंगानगर में समाप्त होती है। दिल्ली में भी इससे कुछ समय पहले मानसून का आगमन होता है। अरब सागर से उठने वाली हवाओं के साथ मानसून कई पड़ावों से गुजर कर पूरे भारतवर्ष को आच्छादित करता है। भारत में आमतौर पर जून से लेकर सितंबर तक का समय वर्षा काल कहलाता है। मानसून आने से पहले आसमान में कुछ बादल गरजते हैं कुछ बरसते हैं। आने वाले मानसून की आहट का एहसास कराते हैं।

इसी क्रम में दिल्ली दरबार में भी मानसून आने से पहले बादलों की गर्जना सुनाई पड़ी। मोदीजी ने पूर्व की तरह सबको चौंकाते हुए मंत्रिमंडल में बड़े स्तर पर फेरबदल कर दिया। जिसमें सभी वर्गों युवा, स्त्रियों, चिकित्सक, नौकरशाह, समाजसेवी, तकनीकज्ञ, अगड़े, पिछड़े, आदिवासी, दलित, तथा विभिन्न क्षेत्रों का समावेश कर भारत की विविधता में एकता को प्रदर्शित किया। उन्होंने यह भी संदेश दिया कि वह दिन चले गए जब मंत्रालय अधिकार  हुआ करता था। यह राजनीति में गॉडफादर सरीखी व्यवस्था को बहुत बड़ा धक्का है। यह आम लोगों के मन में विश्वास भी जगाता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यता तथा सेवाभाव के आधार पर उच्च से उच्च पद पर आसीन हो सकता है।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में वर्षाकाल का बड़ा महत्व है। आज भी खेती किसानी वर्षा ऋतु पर निर्भर है। दिल्ली देश का केंद्र है। मानसून के विषय में कोई भी सटीक भविष्यवाणी करना संभव नहीं होता, क्योंकि यह उपमहाद्वीप के अंदरूनी हिस्से में पड़ता है। यहां पर पता नहीं होता कभी पूर्वी हवा तो कभी दक्षिण-पश्चिम से आने वाली हवाओं के कारण वर्षा होती है या नहीं भी होती। इसलिए इसके आसपास होने वाली घटनाएं भी मानसून सीजन (सत्र) अप्रत्याशित ही रहती हैं। अभी हाल ही में अखबारों ने पीके और राहुल की मुलाकात को प्रमुखता से छापा कि दोनों मिलकर कुछ गुल खिलाने वाले हैं। बरसाती मौसम है शायद कुछ इस तरह की भावनाएं मन में उमड़-घूमड़ रही  हो ’कोई मेरी भी शादी कराई दे तो फिर मेरी चाल देख ले।’ मेरे पैरों में घुंघरू बंधा दे, इस नगमे पर दिलीप साहब का नृत्य और अभिनय दोनों ही मन को मोह लेता है। वर्षों बाद भी उनकी मोहक अदाओं को आज तक याद किया जा जाता है। वे बेहतरीन कलाकार के साथ एक अच्छे इंसान भी थे। उन्हें आने वाली पीढ़ियां वर्षों तक या रखेंगी। उन्हें इस देश से प्यार था। उन्हें यहां पर कभी भी डर नहीं लगा। दूसरी ओर इस देश में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो हर पल डर के साए में रहते हैं।
हांजी, पीके के नाम से ध्यान आया कि दूसरे पीके (आमिर) आजकल चर्चाओं में है। उन्होंने दूसरी पत्नी किरण राव को त्यागपत्र दे दिया है। वह 56 वर्ष की आयु में अब तक मात्र चार बच्चों के पिता बने हैं। यह एक अर्द्धसत्य है क्योंकि अभी भी असीम संभावनाएं बरकरार हैं सभी फोनलाइन खुली हुई है। तुर्की से लेकर भारत तक एक ही प्रश्न है कि गजनी का अगला शिकार कौन? इसके साथ ही एक प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है कि किरण राव को भारत से डर था या गजनी से? बच्चों की चर्चा हुई तो ध्यान में आया कि बच्चों को लेकर उत्तर प्रदेश में रार है।
उधर पंजाब में अमरिंदर सिंह नतमस्तक हैं। मानसून सॉन्ग गा रहे हैं ’भरी बरसात में क्यों दिल जलाया जा, तेरा कुछ ना रहे’। सिद्धू पूर्व की तरह ही आपे से बाहर हैं। उनसे कांग्रेसी पूछ रहे हैं हम आपके हैं कौन? उत्तराखंड में मानसून पूर्व ही झमाझम बारिश हो रही है। अधिक वर्षा के कारण राजपथ की राहे रपटीली हो गयी है। राजधानी में मानसूनी गाना ’आज रपट जाएं तो हमें ना उठाइओ और हमें जो उठाइओ तो खुद भी रपट जइयो। हमें जो बचईयो तो खुद भी डूब जइयो।’ काफी पसंद किया जा रहा है। जब से चीनी मामा पहन पजामा आया है। नेपाल की अजब प्रेम की गजब कहानी हो गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने ओली के ’ओएओए तिरछी टोपी वाले’ मानसून सॉन्ग पर रोक लगाते हुए ओली की तिरछी टोपी को देऊबा के सर पर सीधा रख दिया है। अफगानिस्तान में भारत को झटका है। तालिबान ताल ठोक रहा है जबकि चाचा भतीजे (चीन और पाकिस्तान) बाहों में बाहें डाल मानसून सॉन्ग ‘कोई रोको ना दीवाने को मन मचल रहा है कुछ गाने को’ गा रहे हैं। दूसरी तरफ विदेश मंत्री जयशंकर का पलटवार है ’रूठो को मनाना है, थोड़ी देर लगेगी, बारिश का बहाना है, थोड़ी देर लगेगी, तुम्हें जाना ही होगा, थोड़ी देर लगेगी’ मानसून का रंग ही कुछ ऐसा है। इसकी मस्ती से बचना कठिन है। जहां एक तरफ बॉलीवुड ने सिल्वरस्क्रीन पर इसको जीवंत किया है, वहीं दूसरी ओर अनेक कवियों-गीतकारों ने वर्षा की बूंदों को शब्दों में ढालकर  अपने गीतों के माध्यम से अमर कर दिया। वहीं दूसरी ओर यही बूंदें खेतों में पहुंचकर किसानों के मुरझाए चेहरे को मुस्कान देती है। बाढ़ आने पर यही बूंदें दर्द का रिश्ता भी बनाती है। मानसून वर्षा ऋतु के बारे में बहुत कुछ लिखा जा सकता है, अंतिम कुछ इन पंक्तियों के साथ गुनगुनाते हुए विदा लेते हैं ’बूंदें नहीं, है सितारे, उतरे हैं कहकशां से।

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