2,000 करोड़ के वेंटिलेटर बीमार, इस्तेमाल नहीं होने पर नाराजगी 

नई दिल्ली । देश में जारी कोरोना संकट के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को एक हाईलेवल मीटिंग की। इस मीटिंग में प्रधानमंत्री ने कुछ राज्यों में वेंटिलेटर का उपयोग सही से नहीं होने की कुछ रिपोर्टों को गंभीरता से लिया। उन्होंने निर्देश दिया कि केंद्र सरकार की ओर से मुहैया कराए गए वेंटिलेटर्स की इंस्टालेशन और ऑपरेशन का तत्काल ऑडिट किया जाना चाहिए। कोरोना के साथ-साथ वैक्सीनेशन की स्थिति पर भी चर्चा की गई। अधिकारियों ने प्रधानमंत्री को कोरोना संक्रमण के मौजूदा हालातों के बारे में बताया। ये भी बताया कि देश में टेस्टिंग की रफ्तार भी बढ़ रही है। मार्च में हर हफ्ते 50 लाख के आसपास टेस्ट होते थे, पर अब हर हफ्ते 1.3 करोड़ टेस्ट हो रहे हैं। पीएम को ये भी बताया कि देश में लगातार पॉजिटिविटी रेट घट रहा है और रिकवरी रेट बढ़ रहा है।
जानकारी के अनुसार, पीएम केयर्स फंड से 58 हजार 850 वेंटिलेटर्स खरीदने के ऑडर दिए गए थे। जिसमें से 2,000 करोड़ रूपए के 50,000 वेंटिलेटर्स की सप्लाई सरकार के पास पहुंची। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर शुरू होते ही केंद्र ने राज्यों को वेंटिलेटर्स की सप्लाई दी। लेकिन बिहार, यूपी, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे राज्यों के कई अस्पतालों में पीएम केयर्स के वेंटिलेटर धूल खा रहे हैं। वहीं जिन राज्यों में इनका उपयोग शुरू किया गया है वहां अधिकांश काम नहीं कर रहे हैं।
राज्यों के विरोध के बाद पीएम सक्रिय
दिल्ली, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पहुंचे वेंटिलेटर्स जब खराब निकले तो तीनों राज्यों ने इसको लेकर आवाज उठानी शुरू कर दी। ये आवाजें उस समय उठी जब देश में कोरोना संक्रमित मरीज वेंटिलेटर के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। मामले के तूल पकडऩे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोंदी सक्रिय हुए हैं। उन्होंने अफसरों से पूरे मामले की ऑडिट रिपोर्ट मांगी है।
-58,850 में से 30,000 वेंटिलेटर्स ही खरीदे गए
केंद्र सरकार ने दावा किया है कि पीएम केयर्स से 50,000 वेंटिलेटर खरीदे गए हैं। जबकि सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी में बताया गया है कि 58,850 में से 30,000 वेंटिलेटर्स ही खरीदे गए हैं। 18 मई 2020 को प्रधानमंत्री के सलाहकार भास्कर कुल्बे ने स्वास्थ्य मंत्रालय को एक चिट्ठी लिखी जिसमें पीएम केयर्स फंड से 2,000 करोड़ की रकम से 50 हजार मेड इन इंडिया वेंटिलेटर्स का ऑर्डर दिए जाने की जानकारी दी थी। इस बीच स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से मार्च महीने के अंत में ही वेंटिलेटर खऱीदने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी थी। 5 मार्च 2020 को स्वास्थ्य मंत्रालय के उद्यम एचएलएल ने वेंटिलेटर्स की सप्लाई के लिए एक टेंडर निकाला। इसमें एचएलएल ने टेक्निकल फीचर्स की लिस्ट जारी की जो इन वेंटिलेटर में होनी चाहिए। इस लिस्ट को समय-समय पर बदला गया और कुल नौ बार संशोधन  किए गए। 18 अप्रैल, 2020 को नौवीं बार कुछ नए फीचर जोड़े गए यानी कंपनियों को दिए गए फीचर्स में बदलाव होता रहा।
- धूल खा रहे वेंटिलेटर
बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में पीएम केयर्स फंड के तहत मिले वेंटिलेटर्स का हाल जानने के लिए कुछ अस्पतालों से संपर्क किया गया तो ज्यादातर अस्पतालों से पता चला कि या तो ये वेंटिलेटर अब तक इंस्टॉल ही नहीं हुए हैं, या स्टाफ की जरूरी ट्रेनिंग तक नहीं हुई है। जहां ये इंस्टॉल हो गए हैं और स्टाफ भी है, वहां डॉक्टरों को इसमें ऑक्सीजन को लेकर समस्याएं आ रही हैं। यूपी में पीएम केयर्स फंड से पांच सौ से भी ज़्यादा वेंटिलेटर्स दिए गए थे लेकिन ज्यादातर वेंटिलेटर आज भी अस्पतालों में पड़े हैं और मरीज वेंटिलेटर्स के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। पटना के एम्स को छोड़कर राज्य के लगभग सभी सरकारी अस्पतालों में पीएम केयर्स फंड के तहत मिले ये वेंटिलेटर्स अभी तक चालू भी नहीं हो पाए हैं। कहीं स्टाफ की कमी का हवाला दिया जा रहा है तो कहीं वेंटिलेटर चलाने के लिए संसाधन की कमी का। राजस्थान को पीएम केयर्स फंड से करीब डेढ़ हजार वेंटिलेटर बीते साल मिले। लेकिन अभी तक कई जगह यह वेंटिलेटर इंस्टॉल तक नहीं हुए हैं जबकि अधिकतर जगह से इनमें सॉफ्टवेयर, प्रेशर ड्राप, कुछ समय बाद खुद-ब-खुद बंद होने समेत कई शिकायतें सामने आ रही हैं।

छत्तीसगढ़ गढ़ में 69 में से 58 वेंटीलेटर चले ही नहीं

छत्तीसगढ़ में पीएम केयर्स फंड से मिले वेंटिलेटर पर अलग विवाद चल रहा है। राज्य में कांग्रेस पार्टी के संचार प्रमुख शैलेश नितिन त्रिवेदी ने 12 अप्रैल को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की एक बैठक का हवाला देते हुए दावा किया कि केंद्र सरकार से मिले 69 में से 58 वेंटीलेटर चल ही नहीं रहे हैं। कंपनी से संपर्क करने पर कंपनी में कोई फोन ही नहीं उठा रहा  है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और भाजपा के दूसरे नेता भी सक्रिय हुए और मामला राजभवन तक पहुंचा। रमन सिंह के अनुसार, केंद्र सरकार से जो वेंटिलेटर मिले थे, उनका उपयोग राज्य सरकार ने क्यों नहीं किया? वेंटिलेटर किन परिस्थितियों में खराब हो गए? वे वेंटिलेटर खराब मिले थे या छत्तीसगढ़ में आने के बाद खराब हुए, इन सबकी जांच की मांग राज्यपाल से की गई।
-किसी भी वेंटिलेटर को मानक सर्टिफिकेट नहीं
जब अप्रैल 2020 से देश में कोरोना के मामले तेजी से सामने आने लगे तो वेंटिलेटर्स की मांग बढ़ी। इससे पहले भारत में ज्यादातर वेंटीलेटर्स विदेशों से आते थे। जिस भी देश से ये वेंटिलेटर आते थे उन पर उसकी क्वालिटी  परखने वाली संस्था का सर्टिफिकेट होता था। जैसे अमेरिकी संस्था यूएस एफडीए या यूरोप की संस्था यूरोपियन सर्टिफिकेशन। ये संस्थाएं किसी मेडिकल मशीन को अपने स्तर पर जांचकर एक सर्टिफिकेट जारी करती हैं जो बताता है कि यह मशीन तय मानकों के अनुरूप है। जब भारत में कोरोना के कारण देसी कंपनियों को वेंटिलेटर बनाने का काम दिया गया तब तक देश में वेंटिलेटर्स के लिए कोई संस्थागत नियम नहीं थे। इसी बीच गुजरात में ज्योति सीएनसी कंपनी के धमन-1 वेंटिलेटर की क्वालिटी को लेकर सवाल उठे तो ये समझ आया कि भारत में वेंटिलेटरों को सर्टिफाई करना होगा क्योंकि बिना सर्टिफिकेट के अच्छे वेंटिलेटर और खराब वेंटिलेटर का अंतर पता लगाना एक मुश्किल काम साबित होता जा रहा था।


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