नई दिल्ली। एक ताजा सर्वे से पता चला है कि कोरोना की महामारी के बाद करीब 76 फीसदी डिजिटल कर्मचारी फुल टाइम के लिए ऑफिस नहीं लौटना चाहते हैं। वे काम करने के लिए घर से या ऑफिस और घर दोनों तरीके चाहते हैं। डिजिटल कर्मचारी का मतलब वैसे कर्मचारी से है, जो डिजिटल दुनिया में पले-बढ़े हैं। इनकी सोच और काम करने का तरीका अलग होता है। 
हालांकि, अब भी हफ्ते में पांच दिन काम सबसे लोकप्रिय वर्किंग मॉडल है, लेकिन देश में 76 फीसदी युवा कर्मचारियों का मानना है कि कंपनियों को अपने कर्मचारियों को हफ्ते में चार दिन काम करने की सुविधा देनी चाहिए। कोरोना की महामारी के बाद के हालात में कंपनियां कर्मचारियों के हित में यह फैसला ले सकती हैं। सर्वे में शामिल 22 फीसदी युवा कर्मचारियों ने कहा कि उन्हें काम शुरू करने और खत्म करने का समय तय करने का अधिकार मिलना चाहिए। सायट्रिक्स  की एग्जिक्यूटिव वाइस-प्रेसिडेंट और चीफ पीपल ऑफिसर डोन्ना किमेल ने कहा, "युवा कर्मचारी पुरानी पीढियों से काफी अलग हैं। उन्होंने सिर्फ कामकाज की वह दुनिया देखी है, जो टेक्नोलॉजी के जरिए चलती है। भविष्य में उनकी सफलता के लिए कंपनियों को उनकी वैल्यू, करियर से जुड़ी आकांक्षा और वर्किंग स्टाइल को समझना चाहिए और उनके विकास में निवेश करना चाहिए।"
सायट्रिक्स ने इस सर्वे को बोर्न डिजिटल इफेक्ट नाम दिया है। इसे कोलमैन पारकेस रिसर्च और ऑक्सफोर्ड एनालिटिका के साथ मिलकर किया गया है।  सर्वे में यह जानने की कोशिश की गई है कि युवा कर्मचारी कारोबार और अर्थव्यवस्था पर किस तरह का असर डाल सकते हैं। सर्वे में शामिल 86 फीसदी युवा कर्मचारियों ने माना कि कारोबार के लिहाज से सोशल इंटरएक्शन  काफी अहम है। इस सर्वे में दुनिया के 1000 बिजनेस लीडर्स और 2000 कर्मचारियों की राय ली गई है। इस सर्वे में 10 देशों को शामिल किया गया। 

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