लैतातुल कद्र शब में मुकम्मल हुआ था कुरआन

० 21, 23, 25, 27 और 29 की रातों में तलाशे शब-ए-कद्र

० रमजान माह के आखिरी दस दिनों में होती है जहन्नम से खलासी


न्यूज प्रहरी, मेरठ। रमजान शरीफ में रोजादार की हर 24 घंटे में एक बार दुआ जरूर कबूल होती है। रमजान के पहले दस दिनों में रहमतों की बरसात होती हैं। दूसरे दस दिन मगफिरत के हैं, जबकि आखिरी दस दिनों में जहन्नम से खलासी होती है। इसके अलावा इस माह में लैलातुल कद्र अल्लाह ने इंसान को एक नायाब तोहफे के रूप में अता फरमाई है।


साल की सारी रातों में यह अहम रात हैं। इसी रात में कुरआन मुकम्मल हुआ था। कुरआन मजीद में इस रात की शान में अलग से एक सूरत दी गई है। इस रात में जिब्राइल अलैहि हिस्सलाम फरिश्तों को लेकर आसमान से जमीं पर उतरते हैं और अल्लाह की इबादत कर रहे बंदों के लिए दुआएं रहमत करते हैं। इस रात में सच्चे दिल से तौबा और इबादत करने वाले शख्स की मगफिरत हो जाती है। लैलातुल कद्र में गुरूबे आफताब से लेकर सुबह सादिक तक अल्लाह की इबादत यानि नमाज, नफ्ली, कुरआन की तिलावत और तसबिहात करते रहना चाहिए। नीज किसी के साथ जुल्मए झगड़ा और सलाम-कलाम बंद हो तो उसे गले लगा लेना चाहिए। खासकर मां-बाप, भाई-बहन और पड़ोसी के साथ बिगड़े संबंधों को बहाल कर लेना चाहिए, ताकि वह पूरी तरह से अल्लाह की मगफिरत और रहमत का हकदार बन सके। नबी करीम सल्लू का इरशाद है कि आपस में बेहतरीन सलूक सबसे अफजल हैए जबकि लड़ाई से दीन में खलल पड़ती है।


आखिरी दस दिनों में तलाशे लैलातुल कद्र


रमजान मुबारक रातों में एक शबे कद्र भी है। जो बहुत ही खैर और बरकत की रात है। इस रात के तअयुन में रिवायत मुख्तलिफ है। उलमा दीन ने इस इख्तिलाफ की वजह यह बयान की है कि यह रात किसी तारीख के साथ नहीं, बल्कि मुख्तलिफ रातों में होती हैं। इसलिए जनाबे रसूल ने हर साल इसे मुख्तलिफ रातों में तलाश करने का हुक्म फरमाया। लैलातुल कद्र को रमजान शरीफ के आखिरी दस दिनों में तलाशना चाहिए। हजरत साहब ने फरमाया कि 21, 23, 25, 27 और 29 की रातों में से किसी एक रात में लैलातुल कद्र की रात आती हैं। हदीस में 27 की रात में शब-ए-कद्र का होना बाजतौर पर मिलता हैं। 27 की रात को ही मक्का में विशेष दुआ कराई जाती है।


हजार महीनों में बेहतर है शबे कद्र


कलामे पाक में अल्लाह तआला ने इस रात की फजीलत में एक पूरी सूरत नाजिल फरमाई है। इस सूरत में जिक्र है कि शबे कद्र हजार महीनों में बेहतर है। यानि हजार महीने में इबादत करने का जितना सवाब है, उससे ज्यादा शबे कद्र में इबादत का सवाब है। और इस ज्यादती का तअयन और हद भी मुकर्रर नहीं फरमाई कि कितनी ज्यादा है। इस मुबारक रात में आम फरिश्तें ही नहीं, बल्कि रईसे मलाइका जिब्राइल अलैहि सल्ल भी नजूल फरमाते है, जिनका हिसाब बहुत मुश्किल है। इस मुकद्दस रात के नाम ही सूर-ए-कद्र है। इस सूरत में उस रात की पहली खुसूसियत यह बयान की गई है कि इसमें अल्लाह की तरफ से कलाम इलाही और कुरआन करीम नाजिल किया गया, इसलिए यह रात साल की तमाम रातों में सबसे ज्यादा आला है।





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