रिन्यूएबल एनर्जी ही है विश्व ऊर्जा संकट का स्थायी समाधान डॉ. विवेक कुमार त्यागी

ब्राजील में आयोजित विश्व संसद एनर्जी क्राइसिस में विवि के प्रो. ने की शिरकत 

मेरठ। ब्राजील में  आयोजित विश्व संसद  एनर्जी क्राइसिस पर वैश्विक विमर्श कार्यक्रम में चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय, के विधि अध्ययन संस्थान के समन्वयक एवं एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विवेक कुमार त्यागी ने प्रभावी रूप से सहभागिता की। इस वैश्विक संसद की अध्यक्षता प्रतिष्ठित पर्यावरणविद् प्रो. जॉर्ज इसहाक टोरेस मैनरिक ने की, जबकि संचालन प्रो. डेलिन्टन रिवैरो (ब्राजील) और प्रो. क्लैडी कालगैरो द्वारा किया गया।

             अपने संबोधन में डॉ. विवेक कुमार त्यागी ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व भू-राजनीतिक तनाव, तेजी से बढ़ती जनसंख्या और वैश्विक व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के कारण अभूतपूर्व ऊर्जा संकट का सामना कर रहा है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के उपरांत वैश्विक उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखलाएं प्रभावित हुईं, जिससे ऊर्जा संकट और भी गहराता गया। इसके अतिरिक्त, रूस-यूक्रेन युद्ध (फरवरी 2022) ने यूरोप समेत पूरी दुनिया को इस संकट की ओर धकेल दिया। डा. त्यागी ने अपने भाषण में संयुक्त राष्ट्र के सामान्य प्रस्ताव 1962, कांगो बनाम युगांडा (2015), तथा ई.आई. पासो एनर्जी इंटरनेशनल कंपनी बनाम अर्जेंटीना (2011) जैसे केसों का उल्लेख करते हुए बताया कि ये मामले ऊर्जा संसाधनों पर देशों की संप्रभुता और वैश्विक दायित्व के बीच संतुलन की जरूरत को रेखांकित करते हैं। उन्होंने विशेष रूप से एनर्जी चार्टर ट्रीटी (1994) की चर्चा करते हुए इसे ऊर्जा क्षेत्र की एकमात्र सार्वभौमिक संधि बताया, लेकिन यह भी रेखांकित किया कि इसकी बाध्यकारी शक्ति सीमित है।

एनर्जी मार्केट की अदृश्य शक्तियों और व्यापारिक हितों के संदर्भ में उन्होंने द्वारा 2002 में किए गए ट्रेड रिलेटेड संशोधन (2010 से प्रभावी), रॉकहॉपर बनाम इटली (2017दृ22) और ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट (2021) को महत्वपूर्ण बताया। इसके साथ ही, उन्होंने पेरिस एग्रीमेंट (2015) को मानवाधिकारों के आलोक में स्थायी ऊर्जा समाधान के रूप में विश्लेषित किया।

उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर अब तक जितनी भी संस्थाएं गठित की गई हैं इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (1974), यूएनएफसीसीसी (1992), क्योटो प्रोटोकॉल (1997), प्त्म्छ। (2009) और पेरिस समझौता (2015)वे सभी सराहनीय पहल हैं, परंतु इनका कार्यान्वयन दायित्वहीनता है, जिससे ये बिना दांत का शे| बनकर रह गई हैं।

डा. त्यागी ने ऊर्जा संकट को एक वैश्विक अवसर मानते हुए सभी देशों से एक सामूहिक विधिक ढांचे के निर्माण की अपील की, जो वैश्विक ऊर्जा न्याय के लिए अनिवार्य हो। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि हमें कक्षाओं को प्रथम क्लाइमेट कोर्ट बनाना चाहिए और विश्व पटल पर एक समेकित, बाध्यकारी और न्यायपरक ऊर्जा कानून का खाका तैयार करना चाहिए। उनका यह भी कहना था कि रिन्यूएबल एनर्जी को विशेष रूप से सोलर और विंड एनर्जी  का अधिकाधिक उपयोग कर हम न केवल ग्लोबल वार्मिंग और कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित कर सकते हैं, बल्कि मानव सभ्यता को भी सुरक्षित कर सकते हैं। डॉ. त्यागी ने भारत के अनुभवों का उल्लेख करते हुए बताया कि भारत ने यह सिद्ध कर दिया है कि एक स्वच्छ, समृद्ध और सतत ऊर्जा युक्त समाज का निर्माण संभव है। उन्होंने विश्व समुदाय से अपील की कि भारत की नीतियों और प्रयासों को मॉडल बनाकर एक वैश्विक समेकित विधिक ढांचा तैयार किया जाए।

इस वैश्विक आयोजन में प्रमुख रूप से उपस्थित रहे

प्रो. फ्रोलियन मोवो (फिलीपींस), प्रो. एलीना इवसनेयूवना (रूस), प्रो. दुजवारी (इंडोनेशिया), प्रो. गोंकलो निकोलो (पुर्तगाल), प्रो. पैबेलो रोमन (अर्जेंटीना), प्रो. लेनिन नैवारो (स्पेन), और प्रो. क्रिसथीन रौरीगो (बोलिविया)।

विधि अध्ययन संस्थान, चैधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ में इस व्याख्यान का सीधा प्रसारण हुआ, जिसे देखने-सुनने के लिए विभाग के शिक्षकगण, शोधार्थी और छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। प्रमुख उपस्थित जनों में डा. सुदेशना, डा. कुसुमा वती, श्री आशीष कौशिक, डा. विकास कुमार, डा. अपेक्षा चैधरी, डा. महिपाल सिंह, डा. सुशील शर्मा, डा. मीनाक्षी आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।


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