उर्दू विभाग में “वर्तमान परिस्थितियां और प्रेमचंद” विषय पर एक ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन

 प्रेमचंद ने अपना मुख्य ध्यान उन गांवों और लोगों पर रखा, जिनका उस समय नाम तक नहीं लिया जाता था : प्रोफेसर सगीर अफ्राहीम 

प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में जो प्रस्तुत किया, उसका अध्ययन हर युग में आवश्यक है : 

मुंशी प्रेमचंद के समय जो हालात थे, वे आज भी मौजूद हैं

मुंशी प्रेमचंद के कई उपन्यास और अफसाने हमें सोचने पर मजबूर करते हैं: डॉ. वसी आज़म अंसारी

सीसीएस विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में “वर्तमान परिस्थितियां और प्रेमचंद” विषय पर एक ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किया गया

मेरठ । मुंशी प्रेमचंद हमारे लिए आदर्श हैं। प्रेमचंद ने अपना मुख्य ध्यान उन गांवों और लोगों पर रखा, जिनका जिक्र उन्होंने उस समय भी नहीं किया जब उन्होंने 1936 में प्रगतिशील सम्मेलन के दौरान अपने भाषण में कहा कि अब हमें सुंदरता के मानक बदलने होंगे। यानी हमें साहित्य और समाज की हर चीज में सुंदरता के मानक को देखना होगा। प्रेमचंद ने समाज को बहुत कुछ दिया, इसीलिए हम उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। ये शब्द थे प्रख्यात आलोचक प्रोफेसर सगीर अफ्राहीम के, जो आयुसा एवं उर्दू विभाग द्वारा आयोजित "वर्तमान परिस्थितियां और प्रेमचंद" विषय पर अपना अध्यक्षीय भाषण दे रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि ऐसा लगता है जैसे प्रेमचंद हमारे साथ घर में, महल में, झोपड़ी में, खेत में बैठे हैं। 

इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत सईद अहमद सहारनपुरी ने पवित्र कुरान की तिलावत से की। नात फरहत अख्तर ने पेश की। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर सगीर अफ्राहीम ने की। मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर अब्दुल रहीम (पूर्व विभागाध्यक्ष उर्दू, मुमताज पीजी कॉलेज, लखनऊ) उपस्थित रहे। प्रोफेसर दीपा त्यागी (हिंदी विभागाध्यक्ष, आई.एन.पी.जी. गर्ल्स कॉलेज, मेरठ) और डॉ. वसी आज़म अंसारी (एसोसिएट प्रोफेसर, उर्दू विभाग, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ) . जूही बेगम (पूर्व शिक्षिका, इलाहाबाद डिग्री कॉलेज) और पूनम मनु (प्रसिद्ध लेखिका, मेरठ) ने वक्तागण के रूप में भाग लिया। लखनऊ से आयुसा की अध्यक्ष प्रोफेसर रेशमा परवीन भी कार्यक्रम में शामिल हुईं। स्वागत एवं परिचयात्मक भाषण डॉ. इरशाद स्यानवी ने तथा संचालन  डॉ. अलका वशिष्ठ ने  तथा धन्यवाद ज्ञापन मुहम्मद नदीम ने किया। 

विषय प्रवेश कराते हुए आयुसा के सचिव डॉ. इरशाद स्यानवी ने कहा कि शायद ही कोई विश्वविद्यालय या कॉलेज हो जिसके पाठ्यक्रम में मुंशी प्रेमचंद शामिल न हों। हिंदी और उर्दू लेखक प्रेमचंद ने उर्दू कथा साहित्य में महान योगदान दिया है।

इस अवसर पर प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों में पूरा भारत समाया हुआ है। प्रेमचंद हमारे लिए एक आंदोलन और एक पाठशाला बन गए हैं। मुंशी प्रेमचंद का प्रभाव कई कथा लेखकों की रचनाओं में पाया जा सकता है। पूरा भारत एक बड़े घराने की बेटी, ईदगाह, कफन, दो बैल, निर्मला, विधवा, रंगभूमि आदि में सांस लेता हुआ प्रतीत होता है। 

प्रोफेसर दीपा त्यागी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मुंशी प्रेमचंद के समय जो परिस्थितियां थीं, वे आज भी विद्यमान हैं। उनकी कहानी "ईदगाह" आज के युवाओं को सीख दे रही है। बच्चे बहुत जिद्दी होते हैं, लेकिन हामिद जिद्दी नहीं था। यह कहानी न केवल बच्चों को बल्कि वयस्कों को भी पढ़नी चाहिए। कफ़न में घीसू और मधु गरीब हैं और परिस्थिति की विडंबना के कारण वे अपनी पत्नी के दुःख और दर्द को महसूस भी नहीं कर पाते, लेकिन ऐसा नहीं है। प्रेमचंद के पास यहाँ कहने को बहुत कुछ है। कहानी "निर्मला" में दहेज के अभिशाप पर प्रहार किया गया है। कुछ स्थानों पर बेमेल विवाह मजबूरी में होते हैं, और अन्य स्थानों पर जानबूझकर। ये समस्याएं आज भी बनी हुई हैं। जब प्रेमचंद जैसे महान लेखक इन मुद्दों पर आवाज उठा रहे थे, तब इन बुराइयों को समाप्त किया जाना चाहिए था, लेकिन ये सभी समस्याएं आज भी बनी हुई हैं। 

डॉ. वसी आजम अंसारी ने कहा कि प्रेमचंद का पहला और आखिरी उपन्यास दलित मुद्दों पर नहीं है। मुंशी प्रेमचंद के कई उपन्यास और कृतियाँ हमें समाज में दिख रहे दलित मुद्दों पर चिंतन करने के लिए मजबूर करती हैं। उनका उपन्यास मंदिर 1923 में प्रकाशित हुआ, जिसमें गरीबी, दरिद्रता और सांप्रदायिकता की समस्याओं को प्रस्तुत किया गया है। 

प्रोफेसर अब्दुल रहीम ने कहा कि प्रेमचंद ने जिस निर्भीकता के साथ अपनी कहानियों में अपने विचार व्यक्त किए हैं, उसे आज के संदर्भ में व्यक्त करना बहुत कठिन है। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में जो प्रस्तुत किया, उसका अध्ययन हर युग में आवश्यक है, यही कारण है कि उनकी कविताओं और कहानियों का महत्व आज भी बरकरार है। कार्यक्रम में डॉ. जूही बेगम ने “साम्प्रदायिक सद्भाव और प्रेमचंद” शीर्षक से अपने विचारोत्तेजक आलेख प्रस्तुत किए तथा पूनम राणा ने “समकालीन परिप्रेक्ष्य और प्रेमचंद” शीर्षक से अपने विचारोत्तेजक आलेख प्रस्तुत किए। र्यक्रम से डॉ. आसिफ अली, डॉ. शादाब अलीम, डॉ. फराह नाज, कशिश, मुहम्मद शमशाद व अन्य छात्र जुड़े रहे।


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