कारगर वैकल्पिक समाधान दूर करेगा संकट
- पंकज चतुर्वेदी
प्रधानमंत्री ने वर्ष 2019 में ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से देश को पॉलीथीन और प्लास्टिक से मुक्त करने का आह्वान किया था। इसके बाद कई राज्यों ने पर्यावरण के लिए घातक पॉलीथीन थैलियों पर पाबंदी लगाई। जनता मानती है कि पॉलीथीन हानिकारक है, लेकिन सुविधा या मजबूरी के चलते वही थैली दोबारा हाथ में आ जाती है। नगर निगमों का एक बड़ा बजट नालियों और सीवर की सफाई पर खर्च होता है, फिर भी परिणाम निराशाजनक रहते हैं—क्योंकि इन मलजल प्रणालियों में पॉलीथीन का अंबार जमा है।
दरअसल, उपयुक्त विकल्पों के अभाव में पॉलीथीन थैलियों का संकट बरकरार है। अब स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि धरती, भूजल और समुद्री नमक तक में प्लास्टिक के अणु मिल चुके हैं। यह प्लास्टिक सूक्ष्म रूप में हमारे शरीर की रक्तवाहिनियों और श्वसन तंत्र तक में पहुंच चुका है और जीवन के लिए गंभीर संकट बन गया है।
विशाखापत्तनम से बस्तर जाने वाले मार्ग पर स्थित कोरापुट एक छोटा कस्बा है, जो पहाड़ों और हरियाली से घिरा हुआ है। शहर के बाहर पहुंचते ही सड़क किनारे प्लास्टिक की थैलियां, पानी की बोतलें और पैकेजिंग के कचरे बिखरे हुए दिखते हैं। बरसात के समय ये कचरे जमीन और खेतों में घुलकर ज़हर बन जाते हैं, जो अंततः मानव जीवन के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं।
जनवरी, 2019 में केंद्र सरकार ने सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया, जिसका प्रभाव सामाजिक समारोहों और छोटे रेस्तरां तक दिखने लगा है, लेकिन पॉलीथीन पन्नी अभी भी बड़ी समस्या बनी हुई है। हाल के संसद सत्र में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, देश में हर साल 41.36 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हो रहा है। पर्यावरण मंत्री ने बताया कि प्लास्टिक कचरे की मात्रा लगातार बढ़ रही है। सबसे अधिक प्लास्टिक कचरा तमिलनाडु में होता है, जहां वित्तीय वर्ष 2022-23 में 7.82 लाख टन कचरा उत्पन्न हुआ, जो दिल्ली से लगभग 50 प्रतिशत अधिक है। राज्य में प्लास्टिक पुनर्चक्रण की क्षमता 11.5 लाख टन प्रति वर्ष है, लेकिन केवल 33 प्रतिशत ही इसका उपयोग हो पाता है।
ईपीआर के संदर्भ में यह गौरतलब है कि दिल्ली में इस दौरान 4.03 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ। दूसरे स्थान पर 5.28 लाख टन प्लास्टिक कचरे के साथ तेलंगाना रहा। इस कचरे में बड़ी हिस्सेदारी पॉलीथीन बैग की है। हालांकि, यहां की राज्य सरकार ने प्लास्टिक कचरे पर पाबंदी लगाई हुई है। लेकिन यह पाबंदी अधिकतर कागजों तक ही सीमित है।
संसद को बताया गया कि देशभर में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयों (पीडब्ल्यूएमयू) की मात्र 978 इकाइयां है। विदित हो स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के दूसरे चरण में प्रावधान है कि देश के प्रत्येक ब्लॉक में पीडब्ल्यूएमयू स्थापित की जाए और इसके लिए केंद्र सरकार 16 लाख की राशि मुहैया करवाएगी। चूंकि प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अंतर्गत प्लास्टिक कचरे के संग्रहण व परिवहन के लिए स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायत अधिकृत हैं। लेकिन उनके पास न तो कर्मचारी हैं और न ही बजट। नगर निगम स्तर पर भी इस दिशा में कुछ काम हो नहीं पाया।
पॉलीथीन न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य के लिए भी खतरा है। हालांकि, यह बीते दो दशकों में लाखों लोगों की आजीविका का स्रोत भी बना है, जो इसके उत्पादन, व्यापार और पुनः बिक्री से जुड़े हैं। इसके विकल्प के रूप में बाजार में आए सिंथेटिक थैले महंगे, कमजोर और पर्यावरण के लिए अच्छे नहीं हैं। कागज के बैग भी कुछ जगह मुफ्त बांटे गए, लेकिन उनकी आपूर्ति मांग के मुकाबले कम रही। यदि वास्तव में पॉलीथीन का विकल्प तलाशना है तो पुराने कपड़ों के थैले बनवाना एकमात्र व्यावहारिक विकल्प है। इससे कई लोगों को रोजगार मिलेगा—पॉलीथीन उत्पादन की छोटी इकाइयों में काम करने वाले कपड़ों के थैले बनाने में लग सकते हैं, व्यापारी इन्हें दुकानदार तक पहुंचा सकते हैं और आम लोग इसे सामान लाने-ले जाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि, पॉलीथीन जितनी मांग कपड़े के थैलों की नहीं होगी, क्योंकि थैलों का कई बार उपयोग होता है और उनकी कीमत व उत्पादन भी पॉलीथीन की तरह तेज़ी से नहीं बढ़ेगी।
सबसे बड़ी समस्या दूध, जूस और बनी हुई करी वाली सब्जी जैसे खाद्य पदार्थों के व्यापार की है। इसके लिए एल्यूमीनियम या मिश्रित धातु के खाद्य कंटेनर बनाए जा सकते हैं। यदि घर से अपने बर्तन ले जाने की आदत लौट आए, तो खाने का स्वाद और गुणवत्ता दोनों बनी रहेंगे। पॉलिथीन में पैक दूध या गर्म करी आपके पेट तक जहर पहुंचा सकती है। आजकल बाजार में माइक्रोवेव में गर्म करने लायक एयरटाइट बर्तन उपलब्ध हैं। प्लास्टिक के नुकसान को कम करने के लिए बायोप्लास्टिक को बढ़ावा देना चाहिए। बायोप्लास्टिक चीनी, चुकंदर, भुट्टा जैसे जैविक रूप से अपघटित होने वाले पदार्थों से बनती है। शुरुआत में पन्नी की जगह कपड़े के थैले और अन्य विकल्पों के लिए कुछ सब्सिडी दी जाए तो लोग अपनी आदत बदलने के लिए तैयार हो सकते हैं।
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