देखने का तरीका


देखने का नजरिया तय करता है
कि कौन सा कार्य गुनाह है
या कौन सा बेगुनाह?
भले वह चोरी हो या व्यभिचार
शोषण हो चाहे अत्याचार
या हो रहे हो लूट-खसोट
चाहे देख रहे हो नियत खोट
पर आपके दृष्टिकोण तय करता है
किसे सही माने की गलत?
भ्रम युक्त रहे या गफ़लत
सोंच गुनाहों पर पर्दा डाल देता है
दोषों को दृष्टि संभाल लेता है
तभी तो जाल मारते मछुवारे में
फंसे मत्स्य को निरखकर कोई
असीम-असीम पुलकित हो जाता है
तो किसी को वह जीव-जंतुओं के
कातिल नजर आता है।
पर इस धरा में कोई नहीं सोंचता
पराये जीव के हित को
यहाँ निज स्वार्थ ही तय करता है
   हर्षित है या दमित को।।
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- चन्द्रकांत खुंटे 'क्रांति'
जांजगीर-चाम्पा (छत्तीसगढ़)

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