बच्चे और मोबाइल
इलमा अज़ीम 
बच्चों का हर वक़्त मोबाइल पर उंगलियां चलाना, हर समय हाथ में मोबाइल लेकर बैठना, कोई भी काम हो- चाहे खाना खा रहे हों या बाथरूम में नहाते हुए म्यूज़िक सुनना हो- मोबाइल का साथ कहीं नहीं छूटता है। जब बात होमवर्क या प्रोजेक्ट से संबंधित कुछ भी सर्च करने की हो तब वे अपने पैरेंट्स या शिक्षक से मदद लेने के बजाय मोबाइल का मार्गदर्शन पसंद करते हैं। इसलिए मोबाइल कई बच्चों के लिए शरीर का एक नया एक्सटेंशन बन गया है जो चौबीसों घंटे उनके साथ रहता है। 

हर समय स्क्रीन के सामने बने रहने की लत और हर काम जल्दी से हो जाने की चाहत बच्चों को अधीर बना रही है, जिसके कारण वे चिड़चिड़े हो रहे हैं। अपने माता- पिता, टीचर की थोड़ी-सी भी डांट सहन नहीं कर पाते, गुस्सा भी बहुत जल्दी आ जाता है। हर पल मोबाइल पर आते नोटिफिकेशंस, अलर्ट और मैसेजेस उनका ध्यान भटकाते रहते हैं। उनकी एकाग्रता कम हो रही है और वे काम को बीच में छोड़कर मोबाइल देखने में लग जाते हैं । 



ऐसे में कोई लक्ष्य कैसे पूरा होगा ? सम्प्रेषण में कमी बच्चों ने आपस में मिलना-जुलना, बातचीत करना छोड़ दिया है। वे अभिभावकों और रिश्तेदारों से भी दूर गए हैं। माता-पिता से भी संवाद में कमी आ रही है। आभासी दुनिया की मदद से वे अनजान लोगों से कनेक्ट हो रहे हैं और अपने आसपास के लोगों से दूर। शब्दों के बजाय इमोजी और संक्षेपाक्षरों का उपयोग करके भाषा कौशल भी खो रहे हैं। असलियत में लोगों से दूर होने के कारण अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं, जिसके कारण आत्मविश्वास की कमी, डिप्रेशन, एंग्जायटी, चिड़चिड़ापन, नींद न आना जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।


 काम बीच में ही छोड़ देना बच्चे जब किसी काम में एक-दो बार असफल होते हैं या उसके पूरा होने में ज़्यादा समय लग रहा होता है तो वे उसे बीच में ही छोड़ देते हैं। हर समस्या का हल वे इंटरनेट पर खोजते हैं और त्वरित हल पाने की उनकी ललक अगर पूरी न हो, तो निराशा और हताशा से भर जाते हैं। उनके हर समय स्क्रीन व नीली रोशनी के संपर्क में लगातार रहने से मेलाटोनिन का उत्पादन बाधित होता है। यह लत मोटापे, अनिद्रा और हृदय संबंधी बीमारियों जैसी समस्याएं बढ़ाती है।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts