जब विवाह विश्वास नहीं, वारदात बन जाए
- त्रिभुवन लाल साहू
मेघालय की भीगी वादियों में प्रेम की शुरुआत हुई थी कम से कम ऐसा दिखाया गया। एक नया जोड़ा, एक नया जीवन, और एक नया सफर जिसे ‘हनीमून’ कहा गया। लेकिन यह सफर, एक ऐसे मोड़ पर जाकर थम गया जहां से लौटना मुमकिन नहीं था एक खाई में गिरी लाश के साथ। राजा रघुवंशी की कहानी कोई साधारण प्रेमकथा नहीं, बल्कि इस दौर के रिश्तों का कड़वा आइना है।
11 मई को शादी, 20 को टिकट, 23 को भ्रमण की शुरुआत और फिर 2 जून को एक लाश। शादी से महज तीन हफ्ते में, वह रिश्ता जो सात फेरों के सात वचनों पर टिका था, मौत के कुएं में समा गया। और अब, सबसे बड़ा सच सामने है राजा की हत्या उसी ने करवाई, जिससे उसने जीवनभर साथ निभाने की कसमें खाई थीं। यह सिर्फ एक हत्या नहीं, यह उस भरोसे की मौत है जिस पर हमारे समाज की नींव टिकी है। जब प्रेम छल बन जाए, जब दुल्हन ही शिकारी निकले, और जब 'हनीमून' ही साजिश की जमीन बन जाए तब समाज को सोचने की जरूरत है कि आखिर हम जा कहां रहे हैं?
बीते छह माह में देशभर में ऐसे कई मामले सामने आए, जहां पत्नियों ने अपने प्रेमियों के साथ मिलकर पतियों की निर्मम हत्या की कोई फांसी पर लटका, किसी को टुकड़ों में काटा गया, किसी के पास सांप छोड़ा गया, तो किसी को हनीमून की वादियों में धकेल दिया गया।
क्या यह सब महज संयोग है? नहीं। यह पूरी तरह सुनियोजित हत्याएं हैं ठंडे दिमाग से रची गईं, किराए के शूटरों से करवाई गईं, और सबसे खतरनाक मासूम भरोसे के नाम पर की गईं।
प्रेम, जो कभी विश्वास का प्रतीक था, अब सुपारी शब्द के साथ जुड़ने लगा है। विवाह, जो कभी दो आत्माओं का मिलन था, अब क्राइम थ्रिलर की स्क्रिप्ट लगने लगा है। हनीमून, जो सबसे सुंदर स्मृति बनती थी, अब हत्या का ठिकाना बन रहा है। क्या अब प्रेम के नाम पर विश्वासघात ही बंधन की बुनियाद है? क्या रिश्तों में संवाद की जगह साजिशें ले रही हैं? क्या समाज ने स्त्रियों की स्वतंत्रता को समझे बिना केवल उसकी सीमाएं ढूंढ़ना शुरू कर दिया है?
यह सोचने वाली बात है कि क्यों और कैसे कुछ महिलाएं इतनी क्रिमिनल माइंड हो रही हैं कि वे अपने जीवनसाथी को मौत के घाट उतारने की योजना बना लेती हैं? कहीं यह लालच, स्वतंत्रता की गलत व्याख्या, या समाज में व्याप्त तनावों का नतीजा तो नहीं?
यह वक्त है आत्मनिरीक्षण का, क्योंकि अगर प्रेम में हिंसा शामिल हो गई है, तो समाज के सबसे कोमल भाव की हत्या हो रही है। मेरठ से शिलॉन्ग तक और सौरभ से राजा रघुवंशी तक के मामलों में एक पैटर्न नजर आता है- विश्वास का टूटना, प्रेम का खून में बदल जाना, और रिश्तों का इस्तेमाल अपराध के औजार के रूप में किया जाना। इसका जवाब सिर्फ कानून नहीं, समाज को भी देना होगा। वरना अगला शिकार कौन होगा- यह बस वक्त की बात रह जाएगी।
(बोड़सरा,जाँजगीर, छत्तीसगढ़)
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