रक्तदाता जीवनदाता- मिले राजकीय सम्मान


- डॉ अशोक कुमार वर्मा
विश्व भर में 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस मनाया जाता है। कई बार प्रश्न उठता है कि यह 14 जून को ही क्यों मनाया जाता है। आईए जानते हैं इसके पीछे का कारण। ये इस दिन इसलिए मनाया जाता है क्योंकि रक्त समूहों का वर्गीकरण करने वाले कार्ल लेण्डस्टाइनर नामक ऑस्ट्रियाई का जन्म 14 जून 1868 को हुआ था। उनके सम्मान में यह दिन पुरे संसार में मनाया जाता है। उन्होंने रक्त में अग्गुल्युटिनिन की उपस्थिति के आधार पर रक्त का अलग अलग रक्त समूहों - ए, बी, ओ में वर्गीकृत कर चिकित्सा विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्हें वर्ष 1930 में शरीर विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनके इस महत्वपूर्ण योगदान के लिए उनकी स्मृति में यह विश्व रक्तदाता दिवस 14 जून को मनाते हैं।

सभी जानते हैं कि रक्त के अभाव में किसी व्यक्ति विशेष की जीवन लीला समाप्त हो सकती है। रक्त व्यक्ति की धमनियों में बहने वाला वह जीवन अमृत हैं जिसके अभाव में जीवन संकट में पड़ सकता है। लगभग दो-तीन दशक पूर्व रक्तदान के नाम से लोग डरते थे। यदा कदा अपने घर के सदस्य के लिए भी रक्त की आवश्यकता होने पर दूसरों की और ताकते थे। कई तो डर के मारे वहां से खिसक जाते थे। मुझे याद है कि 1990 में जब मैं राजकीय महाविद्यालय करनाल में पढता था और उन दिनों डीएवी कॉलेज करनाल में एनसीसी द्वारा स्वैच्छिक रक्तदान शिविर आयोजित किया गया। पूरे करनाल जिले के 18 वर्ष से अधिक के विद्यार्थियों को वहां रक्तदान के लिए आमंत्रित किया गया था लेकिन कुछ जागरूक और समाज के प्रति अपने कर्तव्य को समझने वाले गिने चुने विद्यार्थियों ने ही वहां पहुंचकर रक्तदान किया। सौभाग्य से मैं भी उनमें से एक था।
रक्तदान करके मुझे बहुत अच्छा लगा कि मैंने कुछ अच्छा कार्य किया है लेकिन यह प्रसन्नता कुछ ही क्षण की थी क्योंकि जैसे ही रक्तदान का प्रमाण पत्र लेकर मैं घर लौटा और मैंने घर पर बताया तो घर पर मेरी माँ ने चिंता व्यक्त की और इस पर भी जब मेरी भाभी को ज्ञात हुआ तो समस्या और बढ़ गई। मुझे ऐसा लगने लगा कि मैंने कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया। इस घटना का मेरे मस्तिष्क पर भी बहुत प्रभाव पड़ा। घर में माँ और भाई बहन चिंतित थे कि अब तो मैं निर्बल हो जाऊँगा। सांय तक मेरे मन के भीतर द्वंद्व चलता रहा और मैं ऐसा बोध करता रहा कि मैंने बहुत बड़ा अपराध किया है। रात्रि में मेरे पिता श्री कली राम खिप्पल घर लौटे और उन्हें इस बात की जानकारी दी गई। मैं भयभीत था कि पिता जी भी डांटेंगे लेकिन यह क्या उन्होंने तो मेरी पीठ थपथपाकर मुझे और अधिक प्रोत्साहित करते हुए कहा कि बहुत अच्छा किया और वे स्वयं सेना में रहे हैं और उन्होंने वहां पर अनेक बार रक्तदान किया। यह सुनकर मुझे सुख का अनुभव हुआ और जैसे मेरे प्राण लौट आए। अब मुझे लगा कि मैंने कुछ गलत नहीं किया।


अब ये कहानी मेरी अपनी है। मेरे जैसे ऐसे अनेक रक्तदाताओं को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा होगा। ये बात पुरानी हो चुकी है लेकिन आज समय बदल गया है। अनेक प्रेरक रक्तदाताओं, धार्मिक संत महात्माओ और गुरुओं के प्रयासों से लोगों में रक्तदान का भय समाप्त हुआ है। मैंने स्वयं अपने भारतीय सैनिक पिता श्री कली राम खिप्पल जी की प्रेरणा से अब तक 175 बार रक्तदान किया है और 85 बार प्लेटलेट्स दान किये हैं। इतना ही नहीं परिवार के सभी लोग एकसाथ रक्तदान कर रहें हैं। रक्तदान करने का भय अब लोगों में नहीं रहा। डेरा सच्चा सौदा में तो रक्तदान के लिए लोगों को रोते हुए देखा गया कि मेरा रक्त ले लें। इतनी जागरूकता आने के बाद भी आज भी रक्त के अभाव में कई जिंदगियां समाप्त हो जाती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में सालाना लगभग एक करोड़ यूनिट रक्त की आवश्यकता है लेकिन उपलब्धता है 75 लाख यूनिट अर्थात लगभग 25 लाख यूनिट रक्त के अभाव में हर साल सैंकड़ों लोग अपना जीवन खो देते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में कुल रक्तदान का केवल 59 प्रतिशत रक्तदान स्वैच्छिक होता है जबकि भारत की राजधानी दिल्ली में तो स्वैच्छिक रक्तदान केवल 32 प्रतिशत है। दिल्ली में 68 रक्त कोष  हैं पर फिर भी रक्त का अभाव रहता है। सबसे बड़ी बात यह है कि आज भी निजी अस्पताल जिन्होंने अपने रक्त कोष खोले हुए हैं वे दूसरे रक्त कोष का रक्त स्वीकार नहीं करते। यहां तक कि अनेक निजी अस्पताल से फ्रेश ब्लड की मांग की जाती है जबकि रक्तदान के पश्चात एक इकाई लगभग 35 दिन तक सुरक्षित रखी जा सकती है और उसका उपयोग अच्छा माना जाता है।



भारत में आज भी एक लाख यूनिट रक्त की कमी है। आंकड़ों को देखते हुए यह चिंता का विषय है कि रक्तदान के प्रति लोगों में रक्तदान के प्रति जागरूकता जिस स्तर पर लाई जाना चाहिए थी, उस स्तर पर न तो प्रयास हुए हैं और और न ही लोग जागरूक हुए है। अपने देश भारत की बात करें तो अब तक देश में एक भी केंद्रीयकृत रक्त बैंक की स्थापना नहीं हो सकी है जिसके माध्यम से पूरे देश में कहीं पर भी खून की जरूरत को पूरा किया जा सके। दूसरे विज्ञान में हुए विकास के बाद रक्त की एक इकाई को चार भागो में विभक्त करके हम लाल रक्त कणिकाएं, श्वेत रक्त कणिकाएं, प्लाज़्मा और प्लेटलेट्स को अलग अलग कर सकते हैं जो कि उपचाराधीन को आवश्यकतानुसार देकर उसका जीवन बचा सकते हैं।  लाल रक्त कणिकाएं फेफड़ों से ऑक्सीजन लेकर शरीर के सारे हिस्सों में पहुंचाती हैं इनकी आयु 120 दिन की होती है। सफ़ेद रक्त कणिकाएं हानिकारक कीटाणुओ का नाश करती हैं जिनक आयु 7 घंटे से लेकर कुछ दिन होती है।
 प्लेटलेट्स घावों में खून को जमने में सहायता करते हैं और इनकी आयु 5 दिन की होती है। प्लाज़्मा जो कि शरीर की नाड़ियों में बहता है, शरीर के सभी हिस्सों तक कोशाणु, पौष्टिक तत्व और कई किस्म के रासायनिक पदार्थ पहुंचाता है। आजकल नई तकनीक के द्वारा एक व्यक्ति द्वारा दान किये गए रक्त को अलग अलग करके चार लोगों का जीवन बचाया जा सकता है लेकिन दुखद विषय ये है कि बड़े शहरों को छोड़कर छोटे शहरों के सरकारी अस्पतालों में रक्त को विभक्त करने वाली मशीन न के बराबर हैं। जिन शहरों में हैं वे पर्याप्त नहीं। निजी रक्त कोष अपनी मनमानी करके लोगों के जीवन से खिलवाड़ करते हैं। वर्ष 2015 में पुरे देश में डेंगू का प्रकोप फैलने पर कुछ लोभी चिकित्सकों ने निर्धन और बेबस लोगों की जेबों पर डाका डाला था। यह सर्व विदित है। सरकारी असपतालों में डेंगू का पूर्ण इलाज होना चाहिए और रक्त से प्लेटलेट्स अलग करने की मशीन लगानी चाहिए।

कोई भी स्वस्थ्य व्यक्ति जिसकी आयु 18 से 65 साल के बीच हो, जिसका भार 45 किलोग्राम से अधिक हो और जिसे एचआईवी, हेपाटिटिस बी या सी जैसी बीमारी न हुई हो, वह रक्तदान कर सकता है। रक्तदान करने के कई लाभ भी होते हैं। चिकित्सकों के अनुसार रक्तदान करने वाले व्यक्ति को हृदयघात का संकट अगले 6 माह के लिए टल जाता है और रक्त में कोलोस्ट्रोल की मात्रा नियंत्रित होने से अधरंग इत्यादि का भय भी समाप्त हो जाता है।

रक्त कोष केवल और केवल सरकार द्वारा चलाए जाए। केवल इस उपाय से ही लाल रक्त के अवैध व्यापार पर अंकुश लग सकता है। यदि यह संभव न हो तो निजी रक्त कोषों पर सरकार का सीधा नियंत्रण होना चाहिए। इसके साथ ही निजी अस्पताल उपचाराधीन व्यक्ति के लिए फ्रेश ब्लड की मांग करते हैं जबकि ऐसा कही पर वर्णित नहीं है तो उनकी मनमानी पर रोक लगाई जाए ताकि रक्त के लिए लोगों को इधर उधर न भटकना पड़े। रक्दान शिविर केवल और केवल सरकार द्वारा संचालित रक्त कोष ही लगाएं ऐसा नियम बने। चूँकि रक्तदाता अपने रक्त का दान निस्वार्थ भाव से करता है तो सरकार द्वारा निर्धारित परीक्षण शुल्क भी सरकार द्वारा वहन किया जाए।  

यद्यपि भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी और अन्य महान रक्तदाताओं द्वारा रक्तदान के भय को दूर करने के लिए विशेष आयोजन और प्रोत्साहन कार्यक्रम किए जा रहे हैं तथापि ये पर्याप्त नहीं हैं। भारतीय रेड क्रॉस द्वारा दिए गए सम्मान सरकारी सम्मान के समकक्ष नहीं है। सरकार को चाहिए जिस प्रकार खिलाड़ियों को पदक जीतने पर उन्हें सम्मान दिया जाता है ठीक उसी प्रकार रक्तदान को प्रोत्साहित करने की योजनाएं बनाई जाए जिसमें  25 बार, 50 बार, 75 बार और 100 बार रक्तदान करने वाले व्यक्तियों को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाए ताकि रक्तदान एक सम्मानजनक प्रक्रिया के रूप में समाज के समक्ष एक उदाहरण हों।  
(लेखक पुलिस विभाग के सर्वोच्च रक्तदाता हैं)

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