बेहतर राजकोषीय संयम
 इलमा अजीम 
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट प्रस्तावों की सबसे असाधारण बात यदि कोई हो सकती है तो वह राजकोषीय संयम की है। प्रस्तावित व्यय चालू वित्त वर्ष की तुलना में बमुश्किल 6 प्रतिशत अधिक हैं जिसमें से गैर-पूंजीगत व्यय यानी राजस्व व्यय मुश्किल से 3.2 प्रतिशत तक बढऩे का अनुमान है। एक तरह से गैर उत्पादक या नियमित खर्च में कठोरता से कटौती की गई है। दो साल पहले, यह खर्च 8 फीसदी की दर से बढ़ रहा था। वित्तमंत्री ने संसद को यह भी अवगत कराया कि चालू वित्त वर्ष के लिए 6 फीसदी के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल कर लिया गया है, वास्तव में यह सकल घरेलू उत्पाद का 5.8 फीसद हो गया है। 

राजकोषीय संतुलन के लिए यह अच्छी खबर है कि कम राजकोषीय अनुपात को हासिल किया गया है। अगले वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 5.1 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है, भले ही जीडीपी के 10.5 प्रतिशत बढऩे का अनुमान है। तथ्य तो यह है कि वित्तमंत्री ने किसी भी राजकोषीय अभियान या साहसिक कार्य से खुद को अलग रखा। इसके दो मतलब हो सकते हैं और दोनों ही अपने आप में मान्य हैं। पहला-सत्तारूढ़ दल को अपनी चुनावी संभावनाओं की खातिर बजट से राजकोषीय रियायतों की आवश्यकता नहीं है। यह उल्लेखनीय है कि यूपीए-1 के दौरान आम चुनावों से लगभग डेढ़ वर्ष पहले बहुत बड़े स्तर पर कर्जमाफी की घोषणा की गई थी। दूसरा-सरकार का यह दृढ़ विश्वास हो सकता है कि विकास की खातिर हमेशा ही सरकारी खजाने द्वारा वित्तीय रूप से समर्थित पूंजीगत व्यय पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है। ऐसे कदम का राष्ट्रीय स्तर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि भारत का ऋण-जीडीपी अनुपात 100 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। सरकार ने इस अनुमान का खंडन करते हुए कहा था कि वास्तव में ऋण अनुपात कोविड के बाद 88 फीसदी से घटकर 82 प्रतिशत हो गया है। साथ ही ज्यादातर कर्ज घरेलू मुद्रा में है, डॉलर में नहीं। लेकिन मुद्दा तो यह है कि 82 प्रतिशत का अनुपात भी बहुत ज्यादा है। सार्वजनिक क्षेत्र का बढ़ता खर्च निजी संगठनों के निवेश को कम कर रहा है और ब्याज दरें भी ऊंची बनी हुई हैं। इसलिए राजकोषीय संयम की जरूरत इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि ज्यादा घाटे से ब्याज के बोझ में इजाफा होता है और महंगाई भी बढ़ती है। टैक्स स्लैब में कोई बदलाव न होना भी सराहनीय है। उच्च विकास को मुख्यत: निजी क्षेत्र से प्रेरित करना चाहिए। बदले में कर राजस्व बढ़ सकता है जो समाज कल्याण, स्वास्थ्य, शिक्षा, पेंशन और बुजुर्गों के हित में उपयोग किया जा सकता है। सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। यह सरकार की जिम्मेदारी है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।

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