प्राकृतिक संसाधनों का संवर्धन

- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
भारतीय संस्कृति में प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार का उपभोगवादी विचार नहीं है। इसके विपरीत प्रकृति के प्रति सम्मान को महत्व दिया गया। इसके अंतर्गत उसके संरक्षण और संवर्धन का भाव समाहित है। ऐसा होने पर प्रकृति स्वयं मानव के लिए कल्याणकारी होगी। तब उस पर अधिकार जमाने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। तब किसी को यह बताने की जरूरत नहीं रहेगी कि प्राकृतिक संसाधनों पर पहला अधिकार किसका है। यह अधिकार का नहीं कर्तव्य का विषय है। प्रतिस्पर्धा अधिकार के लिए नहीं, कर्तव्य के लिए होनी चाहिए। तब किसी के लिए प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं रहेगी। भारतीय चिंतन के इस विचार को योगी आदित्यनाथ ने समझा। इसीलिए उन्होंने पांच वर्षों के दौरान प्राकृतिक संरक्षण और संवर्धन संबन्धी अभूतपूर्व कार्य किए हैं। पिछले कार्यकाल के दौरान प्रदेश में सौ करोड़ पौधों का रोपण कर कीर्तिमान बनाया गया। दूसरे कार्य के शुरुआती दौर में ही पैंतीस करोड़ पौधों का रोपण हो रहा है। इसके साथ ही जल संरक्षण के भी व्यापक स्तर पर कार्य हुए हैं। इनका लाभ वहां के लोगों को मिल रहा है। अनेक सिंचाई परियोजनाओं को पूरा किया गया। इसमें पिछले चार दशकों से लंबित सिंचाई परियोजनाएं भी शामिल हैं। इससे सिंचित क्षेत्र का व्यापक विस्तार हुआ है।



पश्चिम की उपभोगवादी संस्कृति ने पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान पहुंचाया है। भारत के ऋषि हजारों वर्ष पहले ही पर्यावरण संरक्षण का सन्देश दे चुके थे। यह आज पहले से भी अधिक प्रासंगिक हो गया है। ऋषियों ने नदियों को दिव्य मानकर प्रणाम किया। जल में देवत्व देखा,उसका सम्मान किया। पृथ्वी सूक्ति की रचना की। वस्तुतः यह सब प्रकृति संरक्षण का ही विचार था। हमारी भूमि सुजला सुफला रही, भूमि को प्रणाम किया, वृक्षों को प्रणाम किया। उपभोगवादी संस्कृति ने इसका मजाक बनाया। आज वही लोग स्वयं मजाक बन गए। प्रकृति कुपित है, जल प्रदूषित है, वायु में प्रदूषण है। इस संकट से निकलने का रास्ता विकसित देशों के पास नहीं है। इसका समाधान केवल भारतीय चिंतन से हो सकता है। विश्व की जैव विविधता में भारत की सात प्रतिशत भागीदारी है। हमारे ऋषि युग दृष्टा थे। वह जानते थे कि प्रकृति के प्रति उपभोगवादी दृष्टिकोण से समस्याएं ही उतपन्न होंगी। इसीलिए उन्होंने प्रकृति की शांति का मंत्र दिया था। भारत के इतिहास और संस्कृति दोनों में जैव विविधता का महत्व दिखाई देता है।
अथर्ववेद में विभिन्न औषधियों का उल्लेख है। जैव विविधता को बढ़ावा देना और अधिक से अधिक पेड़ और औषधियां लगाना हम सबका कर्तव्य है। जैव विविधता से हमारी पारिस्थितिकीय तंत्र का निर्माण होता है। जो एक-दूसरे के जीवनयापन में सहायक होते हैं। जैव विविधता पृथ्वी पर पाई जाने वाली जीवों की विभिन्न प्रजातियों को कहा जाता है। भारत अपनी जैव विविधता के लिए विश्व विख्यात है। भारत सत्रह उच्चकोटि के जैव विविधता वाले देशों में से एक है। विगत पांच वर्षाें के दौरान उत्तर प्रदेश में जल संरक्षण एवं संवर्धन के लिए चलाये गये अभियानों के सकारात्मक परिणाम सामने आये हैं। योगी आदित्यनाथ मानते हैं इन प्रयासों से आने वाली पीढ़ियों का भविष्य संवरेगा। भूगर्भीय जल के प्रबन्धन और संरक्षण की कार्ययोजना से व्यापक परिवर्तन देखने को मिला है। पांच वर्ष में प्रदेश में साठ से अधिक नदियों को पुनर्जीवित किया गया है। जन सहभागिता के माध्यम से ग्राम्य विकास और अन्य विभागों ने जल शक्ति विभाग के साथ मिलकर इनके पुनर्जीवन के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। प्रधानमंत्री के आह्वान पर देश व प्रदेश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। अमृत महोत्सव के अवसर पर प्रत्येक जनपद के ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में पचहत्तर -पचहत्तर अमृत सरोवर बनाए जा रहे हैं।
प्रदेश सरकार ने रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के लिए एक विशेष व्यवस्था की है। इसके अन्तर्गत शहरी क्षेत्रों में एक विशेष क्षेत्रफल से अधिक के आवासों के निर्माण में तथा किसी भी सरकारी भवन के निर्माण के लिए रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की अनिवार्यता की गई है। खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़’ एवं घर का पानी घर में खेत का पानी खेत में के विचार से लोगों को जल संरक्षण के प्रति जागरूक किया जा रहा है। पुराने सरोवर,तालाबों तथा कुओं को फिर से पुनर्जीवित करना आवश्यक है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि आदिकाल से ही भारतीय मनीषा ने जल को बहुत पवित्र भाव के साथ देखा था। पृथ्वी सूक्त में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के कल्याण के साथ ही जल के कल्याण की बात भी निहित है। जीव-जन्तु और सृष्टि की कल्पना जल के बगैर नहीं की जा सकती। नदियों को पवित्र भाव से देखा जाता रहा है। उसे मां जैसा दर्जा प्रदान किया गया है। गंगा मैया के रूप में हमने भारत की सबसे पवित्र नदी को मान्यता दी। भारत की ऋषि और कृषि दोनों परम्पराओं के संवर्धन में योगदान देने वाली गंगा हैं।
यह किसी से छिपा नहीं है कि जिस तेजी के साथ आबादी बढ़ी और औद्योगीकरण हुआ, उसके फलस्वरूप भूगर्भीय जल का दोहन भी बढ़ा। उस अनुपात में भूगर्भीय जल के संरक्षण और संवर्धन के लिए जो कदम उठाये जाने चाहिए थे उनमें, बीच के कालखण्ड में, लापरवाही बरती गयी। इसका व्यापक असर प्रदेश के भू-जलस्तर पर पड़ा। अब स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है। डार्क जोन घट रहे हैं। विभिन्न जनपदों के पच्चीस विकास खण्ड भूजल की अतिदोहित श्रेणी से बाहर निकले हैं। इस प्रकार प्रदेश के अन्दर भूजल संरक्षण के लिए अनेक क्षेत्रों में प्रारम्भ किये गये कार्यक्रमों के बेहतर परिणाम सामने आये हैं। कैच द रेन योजना पर भी प्रदेश सरकार कार्य कर रही है।
योगी की सजगता का ही नतीजा है कि बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे में हर 500 मीटर की दूरी पर रेन वॉटर हॉर्वेस्टिंग की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। प्रदेश में ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में भूजल संरक्षण के अलग-अलग मॉडल बनाए गये हैं। वाराणसी मॉडल में पुराने इंडिया मार्का हैंडपंपों का उपयोग सफलतापूर्वक रेन वॉटर हॉर्वेस्टिंग के लिए किया जा रहा है। चित्रकूट मॉडल में पानी की एक-एक बूंद को संरक्षित करने के लिए चेक डैम बनाए गए है। उत्तर प्रदेश में भौगोलिक विविधता है। इसको देखते हुए सरकार ने प्रकृति संरक्षण और संवर्धन की योजनाएं बनाई हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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