भारत की गुटनिरपेक्ष विदेश नीति कितनी सफल
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन और जापान के प्रधानमंत्रीफ़्यूमिओ किशिदा ने कहा यूक्रेन के मामले में हर राष्ट्र अपना स्वार्थ देख रहा है तो यदि भारत अपना स्वार्थ देखता है और अपने परंपरागत मित्र का मौन समर्थन कर रहा है तो क्या गलत कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देश भारत की भूमिका पर तल्ख जरूर हुए हैं और उन्होंने कहा कि जैसा रूस यूक्रेन पर हमला कर अशांति फैला रहा है वैसा ही चीन ताइवान पर हमला करके वैश्विक शांति को खतरा पैदा कर सकता है।
चीन पर पहले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि वह चीनी दक्षिण सागर और जापान के टापू पर अपना अवैध वर्चस्व जमाए हुए है। नरेंद्र मोदी जी के साथ इन दोनों नेताओं ने एक सुर में कहा सभी देशों के स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा की जानी चाहिए और हमले की बजाए संवाद के माध्यम से हल निकाला जाना चाहिए। यह निश्चित है कि दोनों देशों के नेताओं ने अन्य देशों के साथ भारत को रूस यूक्रेन युद्ध के दलदल में घसीटना चाहा है पर भारत अपनी विदेश नीति पर अधिक एवं दृढ़ प्रतिज्ञ है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रूस के खिलाफ अनेक देशों ने प्रतिबंध लगाए हैं पर भारत ने अमेरिका के साथ यूरोप के देशों के इशारे पर रूस के विरुद्ध समर्थन देने से इनकार कर दिया है। भारत को भ्रमित करने के लिए इनकी हरकतों का ढोल भी पीटा गया पर चीन द्वारा गलवान घाटी पर हमले का किसी भी देश में जरा भी जिक्र नहीं किया।। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह है कि हर राष्ट्र रूस यूक्रेन युद्ध में अपनी रोटी ही सेक रहा है, साथ ही अपना स्वार्थ ही मद्दे नजर रख अपनी नीति बना रहा है। अमेरिका की आक्रामक नीति एशियन देशों के लिए भारी नुकसानदेह हो सकती है।
रूस यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में जाकर देखने पर यह समझ में आता है कि अमेरिका पोषित राज्य यूक्रेन को अमेरिका रूस के विरुद्ध लगातार उसे उकसाता रहा है। रूसी यूक्रेन युद्ध का कोई तात्कालिक कारण नहीं है रूस के मन में युद्ध की खिचड़ी बहुत सालों से पक रही थी, यूक्रेन पूरी तरह अमेरिकी नियंत्रण में संचालित हो रहा है और यूक्रेन पूरी तरह चाहता है कि वह नेटो देश का सदस्य बन जाए और अब तो उसने यूरोपियन यूनियन की सदस्यता के लिए भी बड़ी मजबूत अपील की है। यूक्रेन कि अमेरिका से नज़दीकियां रूस को हमेशा खटकती रही, यूक्रेन ने अपने सब परमाणु हथियार अमेरिका तथा सहयोगी देशों के कहने पर नष्ट कर दिए कि वक्त आने पर यही देश उसकी दूसरे देशों से सुरक्षा करेंगे पर अमेरिका सहित नैटो और यूरोपीय देशों ने रूस के विरुद्ध यूक्रेन युद्ध के समय हाथ खड़े कर दिए हैं,केवल धन तथा सामरिक अस्त्र शस्त्र देने पर राजी हुए हैं, रूस, यूक्रेन युद्ध में यदि विश्व युद्ध होता है तो भारत की महावैचारिक दुविधा यह होगी कि इस युद्ध में रूस का साथ दें या अमेरिका समर्थित यूक्रेन का। भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रस्तावित रूस को प्रतिबंधित करने के प्रस्ताव की वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। रूस ने इसे अपना समर्थन मानकर भारत की तारीफ भी की थी। भारत ने इस युद्ध में रूस के यूक्रेन पर हमले की आक्रामक निंदा से अपने को बचा कर रखा है और यूक्रेन के राजदूत की अपील पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से लगभग 40 मिनट विस्तृत चर्चा की जिसमें यूक्रेन में फंसे 20हज़ारभारतीय छात्रों की देश वापसी एवं युद्ध का शांतिपूर्वक कूटनीतिक बीच का रास्ता निकालने की अपील भी शामिल थी। भारत के संबंध पिछले एक दशक से अमेरिका से बड़े अच्छे तथा व्यवसायिक हो गए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा सरकार के साथ-साथ अब तक डोनाल्ड ट्रंप तथा वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के संबंध बड़े दोस्ताना एवं विदेश नीति अत्यंत व्यवसायिक हो गई है। अमेरिका का पुराना ट्रैक रिकॉर्ड भारत के विरुद्ध कभी भी सकारात्मक नहीं रहा है वह पाकिस्तान को सदैव भारत के विरुद्ध भड़काता रहा है और पाकिस्तान को परमाणु शक्ति संपन्न हुई बना दिया है जिसके दम पर पाकिस्तान भारत को समय समय पर आकर दिखाने से नहीं चूकता । दूसरी तरफ हमारे परंपरागत मित्र रूस ने स्वतंत्रता के बाद से ही भारत में भारी निवेश के साथ युद्ध में भी खुलकर समर्थन दिया है। चाहे वह पाकिस्तान के साथ लड़ाई हो या चीन के साथ। रूस ने सामरिक महत्व के अस्त्र-शस्त्र लेने के साथ-साथ भारत का सदैव एक सच्चे मित्र की तरह मनोबल ऊंचा रखा है। ऐसे में भारत किन्हीं भी परिस्थितियों में रूस का साथ छोड़ने की स्थिति में नहीं होगा।अमेरिका वर्तमान में भी यूक्रेन को हमेशा रूस के विरुद्ध युद्ध करने के लिए भड़काता रहा और एन वक्त में उसने अपने हाथ खड़े करके यूक्रेन को अकेला युद्ध में लड़ने के लिए छोड़ दिया है। इसके पूर्व अफगानिस्तान के साथ भी अमेरिका ने कुछ ऐसा ही व्यवहार किया था और तालिबानियों तथा पाकिस्तान की युति के साथ अमेरिकी सैनिक मुंह की खा कर लौटे थे। भारत रूस पर तो भरोसा कर सकता है पर अमेरिका चीन और पाकिस्तान पर किसी भी हालत में भरोसा करने की स्थिति में नहीं है। इसके भौगोलिक कारण भी है भारत रूस के नजदीक एशिया देश का एक प्रमुख स्तंभ है। रूस के पाकिस्तान से इतने अच्छे संबंध नहीं हैं जितने कि भारत से परंपरागत रूप से प्रगाढ़ है, फिर यूक्रेन संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में भारत के सदस्य बनने के विरोध में वोट डाला और कश्मीर में तथा पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवादियों की तमाम गतिविधियों तथा कार्रवाईयों के विरुद्ध कभी विरोध प्रदर्शित नहीं किया है।,यूक्रेन भारत का दुश्मन भले ना हो पर उसने भारत से कभी मित्रता के रूप में अपनी पहचान नहीं बनाई है। भारत अमेरिका,रूस, फ्रांस तथा इजरायल से अस्त्र शस्त्रों की खरीदी करता है। पर भारत और उससे सबसे ज्यादा अस्त्रों की खरीदी रूस से करता है,निश्चित तौर पर अमेरिका रूस से खरीदी ना करने के लिए दबाव डाल सकता है, पर पूर्व में भी भारत में अमेरिकी दबाव की तरफ ध्यान न देकर अपनी गतिविधियां जारी रखी थी। भारत स्वतंत्रता के बाद से ही गुटनिरपेक्ष रहा है पर अब परिस्थितियां अलग है। रूस तथा यूक्रेन का युद्ध भारत के लिए विदेश नीति के लिए इतना आसान न होकर दुष्कर ही होगा।
(चिंतक-लेखक रायपुर, छत्तीसगढ़)।
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