चुनावी बिरयानी के बकरे
आरपी शर्मा
चुनावी हांडी बिहार में चढ़ गई है. 'सरकार' असल में उम्दा बिरयानी होती है जो नेता रसोइया अपने पूंजीपति आका के लिए बनाता है. बिरयानी को पकाने में जद्दोजहद है - चावल, मसाले, तेल आदि जुटाना और वह भी चुनाव में खासा पहले - बिरयानी को मद्धम आंच पर लम्बे समय तक पकाना उत्तम है.
सबसे ज़रूरी है बढ़िया नस्ल के बकरे, जिनमें वोट और विधायक रुपी गोश्त भरपूर हो. भले ही नेताजी शाकाहार पर भाषण देते न थकें पर चुनावी बिरयानी 'वेज' नहीं खाते. इसलिए बकरे चाहिए और उनको घेर कर बूचड़खाने तक लाने और हलाल करने के लिए बढ़िया कसाई चाहिए. असली सत्ता कसाई के पास ही होती है.
कई बार सामग्री जुटाते-जुटाते इतना समय लग जाता है कि हांडी चुनाव के दिन ही भट्टी चढ़ती है. तेज आंच पर पकने से बिरयानी कच्ची रह जाती है, माने सरकार कुछ महीने में ही गिर जाती है. सर्वगुणसंपन्न रसोइया इन बातों को समझता है. उसके पास बढ़िया कारीगर, कांट्रेक्टर और कसाइयों की टीम है. पहले भी चुनावों में बढ़िया बिरयानी पका चुका है जिसको उसके पूंजीपति मित्र आराम से पांच साल तक स्वाद लेकर खाएंगे.
इस बार रसोइया परेशान है क्योंकि बकरों की किल्लत है और रसोइए बहुत हैं. वादों के चावल घोषणापत्र की हांडी में जा चुके हैं, झूठी उपलब्धियों की सब्जियां पोस्टरों में चिपकी हैं, बस बकरे नहीं मिल रहे.
बकरे वे लोकल नेता होते हैं जो वोट और विधायक लेकर हांडी में आ कूदें. इन बकरों पर अक्षमताओं का दोष भी मढ़ा जा सकता है. इस पार्टी के एक पुरोधा नेता हो गए हैं. उनसे जब असफलता पर जवाब मांगा जाता तो जवाब होता - "गठबंधन की कुछ मजबूरियां होती हैं" और ऐसे ही पांच साल खींच गए.
हमारे रसोइए ने पुरोधा के सूत्र वाक्य को कंठहार बना लिया है. उसका सदा प्रयास रहा है कि सरकार की बिरयानी में गठबंधन नेता रुपी बकरे डाल ही दिए जाएं. हरियाणा और मध्य प्रदेश में बढ़िया राजसी बकरे हलाल करके बिरयानी में डाले गए थे. राजस्थान में भी ऐसा ही बढ़िया राजसी बकरा हलाल करने की प्लानिंग थी, पर चौकन्ना बकरा बूचड़खाने के दरवाज़े तक आकर भाग खड़ा हुआ.
तो इस बार बिहार में बकरों की किल्लत है. ऐसा नहीं कि बकरे नहीं हैं, पर उन बकरों में जनाधर रूपी गोश्त की जगह असंतोष की पसलियां उभर आई हैं. एक बढ़िया दलित बकरा तैयार करके रखा भी था, पर वह चुनाव से पहले ही चल बसा. धोखेबाज़ ! कोढ़ में खाज तब हुई जब हेडकसाई 'जुगाड़प्रसाद' सिक लीव पर चला गया.
उधर प्रतिद्वंदी दनादन जन सभाएं किए जा रहा है. सर्वगुण संपन्न महोदय की पूरी टीम प्रतिद्वंदी के नौवीं फेल होने का प्रचार करने पर लगा देने के बाद भी कोई खास फायदा होता नज़र नहीं आ रहा है. हार्ड वर्क को हॉवर्ड पर प्राथमिकता देने की सलाह यह महोदय जनता को पहले ही दे चुके हैं.
बिहार चुनाव में देखना यह होगा कि यह बिरयानी सर्वगुण संपन्न महोदय और उनके 'मित्रों' के हाथ लगेगी, या जनमत की टरबाइन इस बिरयानी को हांडी से निकाल कर दूसरे नेता की हांडी में फेंक देगी. हां एक बात पक्की है. बिरयानी बनाने में मेहनत करने वाले मजदूरों को इस बार भी कुछ नहीं मिलेगा.
बहुत ही मारक रचना
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