अपराधी तत्व हत्या कर शवों को जिले  में फेंक रहे


 

मेरठ ।आपको ये जानकर आपको ताज्जुब होगा कि मेरठ जिला लाशों का डंप यार्ड बनता जा रहा है मगर जमीनी हकीकत यही है। पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक हर माह जिले में दो दर्जन से ज्यादा लावारिस शव मिलते हैं। शवों की पहचान नहीं हो पाने की स्थिति में उनका अंतिम संस्कार किया जाता है या फिर उन्हें सुपुर्द.ए.खाक कर दिया जाता है। जिले में हर माह लावारिस लाशों का मिलना पुलिस की कार्यशैली के साथ-साथ उसकी मुस्तैदी पर भी सवाल खड़ा करता है।

यूं तो पुलिस नियम के अनुसार किसी भी शव के मिलने पर सबसे पहले उसकी शिनाख्त की कोशिश करती है। मगर शिनाख्त न हो पाने पर पुलिस
शव का पंचनामा भरकर उसे मोर्चरी में भेज देती है। अगर तीन दिन के अंदर शव की शिनाख्त हो जाती है तो उसे लिखा पढ़ी कर पोस्टमार्टम
कराकर पीड़ित परिवार सौंप दिया जाता है।मगर तीन दिन तक शव की शिनाख्त न हो पाने पर इंसानियत सेवा समिति की मदद से पुलिस धर्म के
मुताबिक शव का अंतिम संस्कार या फिर उसे सुपुर्द.ए.खाक करा देती है। इस दौरान पुलिस के द्वारा वीडियोग्राफी और फोटोग्राफ ी भी कराई जाती है।
पुलिस का फेल्योर
जिले में हर माह करीब 30 से 40 लावारिस लाशें और सालाना करीब 360 से 480 लावारिस शव मिलते हैं। जो जिले में पुलिसिंग का फेल्योर दिखाने के साथ ही जिले की सुरक्षा पर भी सवालिया निशान लगाते हैं कारणए पुलिस न तो इन शवों की शिनाख्त कर पाती है और न ही इन शवों के मिलने का सिलसिला रोक पा रही है। अज्ञात शवों के मामले में देहात के राजमार्ग व शहर के बाहरी अपराधी तत्वों के लिये महफूज बने हुए है। इस स्थानों पर पुलिस की गश्त न होने के कारण इसका फ ायदा उठाते है। सारकार चाहे किसी भी पार्टी की रही हो लेकिन यह सिलसिल वर्षो से चलता चला आ रहा है। आज तक पुलिस ने इस पर गहराई से मंथन नहीं किया ।
 इन्होने कहा :-
 हर महीने से 30 से 40 लावारिस शव मिलते हैण् तीन दिन तक जब उनकी पहचान नहीं हो पाती तो पुलिस हमसे संपर्क करती हैण् जिसके बाद हमारी समिति पुलिस की मौजूदगी में शव का अंतिम संस्कार या उसे सुपुर्द-ए-खाक करती है।इनकी वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी भी की जाती है।
आशुतोष वत्स, सचिव, इंसानियत मानव सेवा समिति, मेरठ
हर महीने जो लावारिस शव मिलते है उनकी पहचान कराने की कोशिश की जाती हैण् पहचान होने पर कानूनी कार्रवाई करके शव को परिजनों
को सौंप दिया जाता हैण् वहीं जिन शवों की पहचान नहीं हो पाती उनकी नियमानुसार वीडियोग्राफी.फोटोग्राफी कराकर इंसानियत मानव सेवा समिति
के माध्यम से अंतिम संस्कार या फिर सुपुर्द-ए-खाक कर दिया जाता है।
डॉ. अखिलेश नारायण सिंह, एसपी सिटी, मेरठ


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