बच्चों के कुपोषण से जुड़े प्रश्न चिन्ह
- संजीव ठाकुर
बच्चे किसी भी राष्ट्र की सबसे मूल्यवान संपत्ति होते हैं, क्योंकि वही आने वाले कल के नागरिक, निर्माता और राष्ट्र के सशक्त स्तंभ बनते हैं। किंतु यदि वही बच्चे कमजोर, कुपोषित और अविकसित रह जाएँ, तो सशक्त, आत्मनिर्भर और विकसित भारत की कल्पना मात्र भ्रम बनकर रह जाएगी। आज भारत में बच्चों का कुपोषण और बाल विवाह जैसी सामाजिक विसंगतियाँ देश के विकास पर गहरे प्रश्नचिह्न खड़े कर रही हैं।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों के अनुसार भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के लगभग 18.7 प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से “वेस्टिंग” यानी तीव्र कुपोषण के शिकार हैं, जो विश्व में सबसे अधिक दरों में से एक है। यूनिसेफ की 2024 की रिपोर्ट बताती है कि भारत के लगभग हर चौथे बच्चे को गंभीर खाद्य गरीबी का सामना करना पड़ता है। इसका अर्थ यह है कि 25% बच्चों को विविध और पोषक आहार उपलब्ध नहीं हो पाता। ऐसे बच्चे न केवल कमजोर शरीर लेकर बड़े होते हैं बल्कि मानसिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से भी पिछड़ जाते हैं। यह स्थिति भविष्य के नागरिकों की गुणवत्ता और देश की कार्यक्षमता दोनों को प्रभावित करती है।
कुपोषण की जड़ें केवल भोजन की कमी में नहीं, बल्कि असमान संसाधन वितरण, गरीबी, शिक्षा की कमी और सरकारी-सामाजिक तंत्र की कमजोर समन्वय नीति में भी छिपी हैं। भारत सरकार द्वारा पोषण अभियान, मिड-डे मील, आंगनवाड़ी केंद्रों और मातृ-शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रमों के माध्यम से प्रयास अवश्य किए जा रहे हैं, परंतु परिणाम अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुँच पा रहे। सवाल यह उठता है कि जब अरबों रुपये स्वास्थ्य और विकास योजनाओं पर खर्च किए जा रहे हैं, तो फिर भी बच्चे क्यों कुपोषित हैं? जवाब स्पष्ट है — योजनाओं की जमीनी निगरानी और जनसहभागिता का अभाव।
कुपोषण के समानांतर बाल विवाह की समस्या भी उतनी ही गंभीर है। 2006 में बाल विवाह निषेध अधिनियम लागू होने के बावजूद, यूनिसेफ के अनुसार भारत में आज भी लगभग 23% महिलाएँ 18 वर्ष की आयु से पहले विवाह के बंधन में बंध जाती हैं। दक्षिण के शिक्षित राज्य कर्नाटक और तमिलनाडु भी इस सूची में शीर्ष पर हैं। यह विडंबना दर्शाती है कि केवल शिक्षा की उपलब्धता ही पर्याप्त नहीं, बल्कि समाज में मानसिक-सांस्कृतिक जागरूकता आवश्यक है। बाल विवाह न केवल एक लड़की की शिक्षा और आत्मनिर्भरता छीन लेता है, बल्कि उसके शारीरिक और मानसिक विकास को भी बाधित करता है। गर्भधारण के दौरान कुपोषण और स्वास्थ्य-जोखिम बढ़ जाता है, जो अगले पीढ़ी तक दुर्बलता को पहुँचाता है।
सामाजिक संगठनों और गैर-सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) की भूमिका इस संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है। “अक्षय पात्र फाउंडेशन” जैसे संगठनों ने स्कूल मध्याह्न भोजन योजना के माध्यम से लाखों बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया है। “सेव द चिल्ड्रन”, “स्माइल फाउंडेशन” और “चाइल्डलाइन” जैसी संस्थाएँ पोषण, शिक्षा और बाल-सुरक्षा के क्षेत्र में जागरूकता अभियान चला रही हैं। किंतु केवल कुछ संगठनों के प्रयास पर्याप्त नहीं — आवश्यकता है एक व्यापक सामाजिक आंदोलन की, जहाँ हर नागरिक अपनी भूमिका को समझे और समाज अपनी जिम्मेदारी को स्वीकार करे।
कुपोषण और बाल विवाह की समस्या एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी है। जब कोई बच्ची अल्पायु में विवाह करती है, तो उसका शारीरिक विकास अधूरा रहता है, गर्भावस्था में उसे उचित पोषण नहीं मिल पाता और जन्म लेने वाला बच्चा भी कमजोर होता है। इस प्रकार कुपोषण का चक्र पीढ़ी दर पीढ़ी चलता जाता है। इसे तोड़ने के लिए सरकार, समाज और नागरिक—सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे।
आज समय है कि पोषण और शिक्षा को केवल सरकारी योजनाओं का हिस्सा न मानकर सामाजिक दायित्व बनाया जाए। स्कूलों, पंचायतों और आंगनवाड़ी केंद्रों को पोषण-जागरूकता के केंद्रों में बदला जाए। स्थानीय स्तर पर पोषण-समिति बनाकर बच्चों के आहार, स्वास्थ्य जांच और विकास की नियमित निगरानी की जाए। माता-पिता को भी यह सिखाना होगा कि बच्चे को केवल पेट भरना पर्याप्त नहीं, बल्कि पौष्टिक आहार देना आवश्यक है।
भारत के लिए यह चिंताजनक है कि वैश्विक भूख सूचकांक में 2024 में वह 125 देशों में 111वें स्थान पर पहुँच गया, जबकि पड़ोसी बांग्लादेश और नेपाल इससे आगे हैं। यह संकेत है कि यदि हमने बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य पर समुचित ध्यान नहीं दिया, तो आर्थिक विकास के बावजूद सामाजिक स्वास्थ्य दरकता जाएगा।
समाधान केवल सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। जनजागरूकता, महिला सशक्तिकरण, स्थानीय भागीदारी और सामुदायिक पहल के बिना यह जंग अधूरी है। कुपोषण और बाल विवाह जैसे मुद्दे केवल आंकड़े नहीं, बल्कि उन नन्हीं आँखों का सवाल हैं जिनमें कल का भारत झलकता है।
यदि हम आज इन बच्चों को सशक्त, शिक्षित और पोषित नहीं बना सके, तो कल का भारत दुर्बल और दिशाहीन होगा। इसलिए यह समय है कि हर घर, हर विद्यालय और हर समुदाय में यह संकल्प लिया जाए- “कोई बच्चा कुपोषित नहीं, कोई बाल विवाह नहीं।” तभी भारत का भविष्य वास्तव में उज्ज्वल कहलाएगा।
(स्तंभकार, रायपुर, छत्तीसगढ़)



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