एकल शिक्षक की त्रासदी

 राजीव त्यागी 

भारत में आज भी कई सरकारी और प्राइवेट स्कूलों के बच्चे सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे सभी विषय पढ़ रहे हैं। शिक्षा मंत्रालय के साल 2024-25 के आधिकारिक डेटा के मुताबिक देश के कुल 1,04,125 स्कूलों में एक ही शिक्षक सभी कक्षाओं एवं सभी विषयों को पढ़ा रहे हैं। यह आंकड़ा हमारे शिक्षा तंत्र की विफलता को दर्शाता ही नहीं रहा है बल्कि चिन्ताजनक स्थिति को बयां कर रहा है। 
ये आंकडे़ हमारे शैक्षणिक विकास पर एक गंभीर प्रश्न खड़ा कर रहे हैं। शिक्षा मंत्रालय के ये हालिया आंकड़े बताते हैं कि एकल शिक्षक स्कूलों में करीब पौने चौंतीस लाख विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं। बताया जाता है कि आंध्र प्रदेश में ऐसे स्कूलों की संख्या सबसे ज्यादा थी, जबकि उसके बाद उत्तर प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक और लक्षद्वीप का स्थान है। एक तो हमारे देश में शिक्षा का बजट पहले ही बहुत कम है, फिर उस धन का सही उपयोग नहीं हो पाना एक भ्रष्टाचार ही है। 


इसमें दो राय नहीं कि प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा के गिरते स्तर के मूल में हमारे नीति-नियंताओं की अनदेखी ही प्रमुख कारक है। आखिर हम अपने नौनिहालों को कैसी शिक्षा दे रहे हैं? आखिर उनके बेहतर भविष्य की हम कैसे उम्मीद करें? जाहिर बात है कि एक शिक्षक सामाजिक विषय, भाषा, विज्ञान, अंग्रेजी और गणित में माहिर नहीं हो सकता। एक शिक्षक छात्रों की हाजिरी दर्ज करेगा या पढ़ाई कराएगा? एकल शिक्षक स्कूलों का परिदृश्य भारत के विकास की पौल खोलने वाला है। 


भले ही एकल शिक्षक स्कूलों में पिछले वर्ष की तुलना में 6 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई हो, फिर इतनी बड़ी संख्या में ऐसे स्कूलों का होना हमारी शिक्षा व्यवस्था की बड़ी नाकामी को ही उजागर कर रहा है। यह स्थिति किसी एक आंकड़े की नहीं, बल्कि राष्ट्र के भविष्य की गहरी त्रासदी की तस्वीर है। 

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