बाढ़ से घिरा जनजीवन
इमला अज़ीम
अतिवृष्टि के कारण आई बाढ़ ने जनजीवन के लिए मृत्यु से लेकर अनेक अन्य संकट उत्पन्न कर दिए। भारत ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया इत्यादि देशों में भी अत्यधिक वर्षा के कारण आई जलप्रलय में कई सौ लोग मारे गए हैं। नगर, उपनगर, बड़े-बड़े आवासीय क्षेत्र विशाल जलराशि में डूबे हुए हैं। लाखों-करोड़ों रुपए मूल्य की व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक संपत्तियां-परिसंपत्तियां नष्ट हो चुकी हैं। मृतकों के परिवार वालों के सामने अन्न-जल के संकट के साथ-साथ आवास, आजीविका और सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा की समस्याएं भी खड़ी हैं। यह परिस्थिति प्राकृतिक प्रतिकूलताओं तथा जलवायु असंतुलन की पुनरावृत्ति के कारण उत्पन्न हो रही है।
बाढ़ के बहते हुए पानी तथा विशाल क्षेत्र में ठहरे हुए कीचड़-गाद-गंदगी से युक्त पानी के कारण अकल्पनीय समस्याएं होती हैं। प्रकार-प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। रहन-सहन, भोजन, पेयजल, आजीविका, विद्यालय, शिक्षा, काम-धंधे, व्यवसाय, नौकरी, सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाता है। उनका आवास, जीवनचर्या के लिए आवश्यक भौतिक वस्तुएं, सभी कुछ आपदा में नष्ट हो जाता है। उनके लिए जीवन में प्रत्येक आवश्यकता, सुविधा तथा वस्तु को पुन: क्रय करके संग्रहीत करना अत्यंत कठिन हो जाता है।
शासन, समाज, सहायता प्रदान करने वाले संगठनों तथा संबंधियों द्वारा सहायता-धनराशि एवं अन्य जीवन-सुविधाएं तत्काल व सुगमतापूर्वक प्रदान नहीं की जातीं। इन्हें प्राप्त करने के लिए भी पीडि़त व्यक्तियों को संघर्ष करना पड़ता है। इन परिस्थितियों में जब पीडि़तों का जीवन चहुंओर से असुरक्षित तथा संघर्ष में व्यतीत होता है तो उनका मन अवसादग्रस्त हो जाता है। उनकी आत्मा निर्बल हो जाती है। प्राय: शासन पर ही देश व समाज की प्राकृतिक तथा सामाजिक, सभी प्रकार की समस्याओं के निराकरण का उत्तरदायित्व होता है।
शासन इसलिए उत्तरदायी होता है क्योंकि उसके पास व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह से अधिक साधन होते हैं, जिन्हें समस्याओं के समाधान हेतु नियोजित किया जा सकता है। आवश्यकता होने पर शासन व्यक्तियों तथा नागरिकों के जीवन की रक्षा के लिए अपने हरसंभव साधन का उपयोग करता है, किंतु शासन, समाज और लोगों को यह विचार करना होगा कि ऐसी आपदाओं से सुरक्षित होने के लिए विश्व स्तर पर प्राकृतिक संरक्षण, जलवायु संतुलन तथा ऋतु अनुकूलन की दिशा में अपेक्षित कार्य किए जाने की आवश्यकता है।
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