ताकि समाज हो संतुलित
इलमा अज़ीम
अब हमारे समाज में पुरुषों के अधिकारों और उनके सामने आने वाली चुनौतियों पर भी खुलकर बात होने लगी है। इसी कड़ी में एक पुरुष आयोग बनाने की मांग जोर पकड़ रही है। पुरुषों का तर्क है कि उनके लिए भी एक ऐसी संस्था होनी चाहिए जो उनकी समस्याओं को सुने और उनका समाधान करे। यह लैंगिक समानता की दिशा में एक कदम है।
अब हमारे समाज में पुरुषों के अधिकारों और उनके सामने आने वाली चुनौतियों पर भी खुलकर बात होने लगी है। इसी कड़ी में एक पुरुष आयोग बनाने की मांग जोर पकड़ रही है। पुरुषों का तर्क है कि उनके लिए भी एक ऐसी संस्था होनी चाहिए जो उनकी समस्याओं को सुने और उनका समाधान करे। यह लैंगिक समानता की दिशा में एक कदम है।
हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहिए जहां कोई भी व्यक्ति, चाहे वह पुरुष हो या महिला, न्याय और गरिमा से वंचित न हो। यह समय है जब हम सभी लिंगों के सामने आने वाली जटिलताओं को पहचानें और एक ऐसा कानूनी और सामाजिक ढांचा तैयार करें जो सभी के लिए निष्पक्ष और न्यायपूर्ण हो। इस दिशा में गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। जब हम लैंगिक समानता की बात करते हैं, तो अक्सर महिलाओं के अधिकारों और उनके सशक्तिकरण पर ज़ोर दिया जाता है, जो कि बिल्कुल सही और आवश्यक भी है।
लेकिन, इस चर्चा में एक महत्वपूर्ण पहलू अक्सर छूट जाता है- पुरुषों के अधिकार और उन्हें न्याय दिलाने की आवश्यकता। लंबे समय से, घरेलू हिंसा और प्रेम संबंधों में होने वाली क्रूरता को अक्सर महिलाओं से जोड़कर देखा जाता रहा है, जो कि बिल्कुल सही भी है। महिलाएं इन अपराधों का शिकार होती हैं।
लेकिन, सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि पुरुष भी इन अपराधों के शिकार हो रहे हैं। कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां प्रेम संबंधों में अनबन या अन्य कारणों से पतियों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है। इन घटनाओं में, पुरुषों को न केवल शारीरिक हिंसा का शिकार होना पड़ता है, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी उन्हें काफी प्रताड़ना झेलनी पड़ती है, और उनके पास मदद या शिकायत दर्ज कराने के लिए कोई खास मंच नहीं है। झूठे आरोप भी एक गंभीर समस्या है जिससे पुरुष जूझते हैं।
दहेज उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न या अन्य अपराधों के झूठे आरोप पुरुषों के जीवन को पूरी तरह से तबाह कर सकते हैं, भले ही वे बाद में निर्दोष साबित हो जाएं। यह उनके करिअर, सामाजिक प्रतिष्ठा और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डालता है। वर्तमान कानूनी ढांचे में, ऐसे मामलों में पुरुषों को खुद को निर्दोष साबित करने के लिए अक्सर लंबा और जटिल संघर्ष करना पड़ता है, और उनके लिए कोई विशेष सहायता प्रणाली नहीं है।
ऐसे में उन्हें न्याय पाने और अपनी बेगुनाही साबित करने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यह उनके करियर, सामाजिक प्रतिष्ठा और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डालता है। यही कारण है कि आत्महत्या के मामलों में भी पुरुषों की संख्या अक्सर अधिक पाई जाती है, जो उनके अंदरूनी संघर्षों को दर्शाती है।
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